हम अपराधी है देश के ....
गरीबी के अभिशाप को झेलते .देश की बड़ती महंगाई के जिम्मेदार है हम
किसान से बने शहरों में मजदूर बिगड़ते कानून के जिम्मेदार हैं हम !
आधे पेट ,दिनभर संघर्ष से पाए निवाले से देश का अर्थ चरमराया है !
देश का विकास रोका है, बाबुयों और नेतायों का मक्खन हमने चुराया है !
बड़े जानकार बताते हैं की हमने हर विकास योजना का पैसा डकारा है !
देश के प्रगति को इतने सालों तक हमारी जलती भूख ने ही संवारा है !
कम होती इस भूख ने कीमतें बड़ाई और काले धन का जमाव कराया है !
हमारे इस नालायक सिकुड़े खाली पेट ने , देश पर इतना जुल्म ढाया है !
मक्दोनाल्ड और पिज्जाहट में हमेशा दिखाई दिए हैं .
हम देश के धनी गरीब है और Rs ५० में ,
कोला,दूध,सब्जी,जूस ,कॉर्न फ्लेक्स से परिवार ने भूख मिटायें हैं
पेट के गहन अँधेरे में शांत भूख की आवाजों ने इतिहास के पन्ने बदले हैं .
हमारे निवाले छीन छीन कर बनते आपके महलों पर नजर नहीं डाली हमने ,
पर याद रखिये ,पानी पी कर ठंडी होती भूखों से कई देशों के आसमान जले हैं
एक प्रसांगिक लेख
ReplyDeleteOur problem is that we have developed apathy towatds incidences of corruption and nepotism. Need of the hour is to have antipathy towards corrupt and corruption with zero tolerance policy. Corruption is the single most important reason behind all the problems our country faces today....
ReplyDeletePIYUSH TIWARI