21st October : Police Memorial Day of India : एक भूला खो गया दिन
क्या आप जानते हैं की 21st October को "पोलिस शहीद दिवस " या " पुलिस स्मृति दिन " के लिए मनाया जाता है.
किसी अखबार ने या किसी टीवी चैनल ने इसकी कोई महत्वपूर्ण खबर न दी. ना ही मोमबत्ती मार्च करने वाले तथाकथित समाज के काफी की चुस्की में देश की हर समस्या पर चिंता बताने वाले बुद्धिजीवी वर्ग इस चर्चा की...और ना ही इन खाकी वर्दियों के सुरक्षा में रहने वाले नेता गणों ने संस्मरण किया या फिर ओप्चारिक्तायों के अलावा किया .
क्या आप जानते हैं की सितम्बर 2010 से इस वर्ष के 31 अगस्त तक देश में कुल 633 पुलिसकर्मी और अर्धसैनिक बलों के जवान शहीद हुए हैं , हम सबकी सुरक्षा के लिए लड़ते हुए . कैसे जान पाएंगे हम ....हमारक काम तो सड़कों पर किसी भी घटना पर पुलिस को कोसना और उनकी निंदा करना भर ही होता है. सरकार के पास तो हर समस्या चाहे वह नक्सल की हो या भट्टापौरसाल नॉएडा में किसानो के आन्दोलन का हो. ....खाकी ही नजर आती है...और अंत में यही राजनीती और समाज के चक्रव्यूह में शहीद भी होते हैं ...राजनैतिक दलों के पास विकास का मुद्दा सिर्फ नारों में वोटों के लिए रहा गया है . जांत पांत , धर्म और सामाजिक संबधों में दरार की राजनीती खेल कर सत्ता के गलियारों में पहुँचने वाले नेताओं , आपराधियों के सहारे वोट बटोर कर कुर्सी हथियाने वाले और आये दिन घोटालों की समाचारों में महंगाई से परेशान जनता ...क्या इन सबका हल सिर्फ कानून और खाकी है.
मुंबई के हुए आतंकवादी हमलों में शहीद हुए वर्दियों को तो हम कब का भुला बैठे हैं....क्या सोचा कभी की हम तो कुछ ही दिनों में पटरी पर आ गए पर उन मेहन्दी लगे हाथों का क्या ज्सिने चूड़ियाँ उतारी होगी...या फिर इन पथराई आँखों में एक मां का इंतज़ार.....क्या हम और हमारा समाज इतना स्वार्थी और बेशर्म हो गया है .क्या हम जानते है वर्षों से CRPF टुकड़ियाँ और पुलिस के जवान दंतेवाडा के बीहड़ जंगलों में बुनियादी नागरिक सुविधायों से दूर लगे हुए हैं और इस डर से की कब उनकी गाडी किस बारूदी सुरंग का शिकार हो जाए ? सरकार और नक्सल दोनों के बीच फंसे यह जवान बहनों की शादी , बुडी अम्मा की खांसी और अपने बड़ते बच्चों की मुस्कराहट के लिए तरसते हुए , अखबारों में नेताओं के भ्रष्ट काले कारनामें और बुद्धिजीवों की अनर्गल प्रलाप को भी जानते हुए इस लिए शहीद होने को तैयार हैं ताकि हम और आप काफी की चुस्कियां लेकर बहस कर सके.
सिर्फ FIR लिख देने से इसका हल नहीं निकलेगा .याद रहे पुलिस के जवान और अधिकारी भी इसी समाज से निकल कर आते हैं. प्रशासनिक अधिकारी भी इसी समाज में पैदा होते हैं. यही समाज भ्रस्त नेताओं और अपराधियों को जनम देता है. यही समाज पुलिश के मनोबल को गिराता है
एक नए दृष्टिकोण से बहस करें... क्या यह विडबना नहीं है इस विश्व के सबसे बड़े प्रजातान्त्रिक देश में निश्पच्छ चुनाव के लिए भी खाकी की ताक़त पर निर्भरता है..
सड़कों पर पत्थर बरसाते लोगों के बीच बुनियादी सुविधायों से वंचित 18 घंटो से ज्यादा कर्त्तव्य निभाती खाकी वर्दी के वेतन से बेखबर , कड़ाके की सर्दी हो या तीखी धुप या फिर तेज बारिश , मात्र ५०रुपये लेने वाले सिपाही पर देश के भ्रष्ट होने की चिंता और अपनी जरा सी गलती कर उसके टोकने पर फ़ोन घुमाने वाले हम लो...राजनीती की दहलीज़ पर कब तक दम तोड़ता रहेगा जवान ...शसस्त्र जवान ही क्यों मारे जातें हैं..... एक मॉडल की आत्महत्या और प्रेम की कहानी पाती है कई दिनों की सिलसिलेवार न्यूज़ कवरेज ...किसी विवादस्पद घटना पर इंडिया गेट पर मोमबत्ती जला कर मीडिया के सामने कुछ मिनटों का मार्च.....क्या इन जवानों के लिए कोई नहीं है ? क्या आप जानते हैं की 305 आत्महत्या 2004 से 2007 तक अर्धसैनिक बालों के जवानों ने की . Bureau of Police Research & Development Ministry of Home Affairs के अनुस्सर एक Survey में 77 % BSF जवानों ने ४ घंटे से कम नींद और आराम मिलने की बात की.
कम से कम आज के दिन पुलिस शहीद दिवस के अवसर पर इनके अच्छे कार्यों को याद करें....
क्या हम आते जाते कम से कम सडकों जाते अपनी एक कर के शीशे नीचे कर तीखी धुप में खड़े पुलिस वाले को एक मुस्कराहट दे सकें.....नेताओं से कुछ भी उम्मीद करना बेकार है..पर हम और आप तो यही कर सकते है......
"21 अक्टूबर 1959 को सीआरपीएफ के डिप्टी करमसिंह के नेतृत्व में 20 जवानों की गश्ती टोली लद्दाख में मुस्तैद थी। तभी चीनी सेना ने घात लगा कर हमला कर दिया। हमले में 10 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। शेष को बंदी बना लिया गया। पुलिस जवानों के बलिदान की स्मृति में प्रतिवर्ष 21 अक्टूबर को देशभर में पुलिस शहीद दिवस का आयोजन किया जाता है। "