हमारी उम्मीदें हैं आसमान की ओर
जैसे किसान को होती है घुमड़ते बादलों से
भक्तों की आस्था है नभमंडल के देवताओं से ,
हर वक़्त इसी तरह स्वाति बूंदों की टकटकी लगाये
चातक जैसी जनता की श्रधा है.....
इस दलदल की राजनीती में कोई तो
बेदाग होगा,
जमीन की लूटमार में कोई तो नेता
"जमीनी" होगा
पर बढ़ते गए इन सपनों के दायरे...
कौन कहे यह सपने क़ुरबानी माँगते हैं .
निष्क्रियता की चादर ओढ़े देश में ,
यह विश्वास क्रांति माँगते हैं..
जैसे किसान को होती है घुमड़ते बादलों से
भक्तों की आस्था है नभमंडल के देवताओं से ,
हर वक़्त इसी तरह स्वाति बूंदों की टकटकी लगाये
चातक जैसी जनता की श्रधा है.....
इस दलदल की राजनीती में कोई तो
बेदाग होगा,
जमीन की लूटमार में कोई तो नेता
"जमीनी" होगा
पर बढ़ते गए इन सपनों के दायरे...
कौन कहे यह सपने क़ुरबानी माँगते हैं .
निष्क्रियता की चादर ओढ़े देश में ,
यह विश्वास क्रांति माँगते हैं..
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