लाइव इन रिलेशनशिप - सामाजिक जरूरत या सामाजिक समस्या
एक बहुत चर्चित पर दबीजबान का विषय जो आज के आधुनिकता और तनावपूर्ण होती जिंदगी से पनप रही लाइव इन रिलेशनशिप . सम्युक्तापरिवार के लुप्त होने , करियर और प्रोफेस्सिओं main गला काट प्रतिस्पर्धा , असुरछा की भावना , भौतिक प्रगति की प्राथमिकता , क्रितीम माहौल की मजोबूरी और इकोनोमी पर निर्भर आपनो की नजदीकियां आज के समाज को एक नयी दिशा मिल रही है . पाश्चात्य संकृति का प्रभाव , घटते जा रहे शहरों के फासले , कम होती जा रही नर - नारी की दूरियां और जल्द ही बहुत कुच्छ प् लेने का बढता तनाव हमारी मानसिक और शारीरिक छमता से भी कहीं ज्यादा कुछ कर गुजरने का दबाव बनता है .
हाल में हुई फैशन माडलों की मौतों , कॉर्पोरेट जगत में बढ़ते सेक्सुअल हरस्समेंट के केसेस , नित नए उभरते स्केंदल्स और टीवी चैनलों पर टूटे बनते रिश्तों की मसालेदार कहानियां समाज का खोखलापन ही जाहिर करता है जिसे हम शायद एक शालीनता की चादर ओडे हमेशा स्वीकार करना नहीं चाहते हैं . मौलिकता की दुहाई देते संस्कृति की आड़ में युवायों पर नकेल कसने की धरम के ठेकेदारों की पोंगापंथी के बीच हम कहीं भूल रहें हैं बदलते समाज को समझ कर उसे अच्छी दिशा दे पाने की जिम्मेदारियां . युवा स्वंय संघर्ष कर आपना रास्ता बना रहा है उसे सही या गलत जाने बिना , अपने समाज के अनुसार . पबों में बदती भीड़ अब सिल्वर स्पून लिए लोगों से कहीं ज्यादा केरीयर के पायदान पर चड़तें होनहार लोगों की है
शहरों में उन्च्ची इमारतों के बीच , मनी ट्रान्सफर का वेट करते पेरेंट की छाया के बिना , जीवनसाथी चुनने में घुसी उनकी नाक और आपने बड़ों की रिमोट -चौकीदारी से दूर अकेलेपन का बढता अहसास दोठे युवक प् लेते हैं एक दुसरे में मानसिक निर्भरता की जरूरत जो बदल जाती लाइव इन रिलेशनशिप . वर्षों से लोग परदेश निकल जाते थे और इकठा रह कर गुजराकरते थे ताकि बहुत कुच्छ बचा कर लौट सकें आपने गावं . पर आज जब लड़कियों और लड़कों के कामों और छमताओं में कोई अन्तर ही नहीं रहा और काम करने वाली जगहों में १० से १२ घंटें साथ रहना अब हकीकत है , तो एक छत के नीचे साथ रहा कर बिना आज़ादी खोये क्यों नहीं रह सकते है ? यह सवाल आज लाइव इन रिलेशनशिप के तौर पर समाज में बहुत गहरी पैठ बना रह है चाहे हम सब इसे मान्यता उपरी तौर पर न दे पाए और नैतिकता का आडम्बर पहने इसे आधुनिकता के नाम पर नकारते रहें . पर इससे होने वाले परिणामों को हम नजरंदाज़ नहीं कर सकते .क्योंकि मानसिक निर्भरता को शारीरिक निभरता बनने में ज्यादा समय नहीं लगता है.
तो फिर लाइव इन रिलेशनशिप क्या सामाजिक जरूरत है या सामाजिक समस्या ? आज ये सोचना है की यह एक जरूरत बनी कैसे ?. कोई भी जरूरत अपनी निर्धारित सीमा के पार जाने पर समस्या तो बन ही जाती है और इन समस्यों को न रोका जाए तो सामाजिक कुरीतियाँ बन जाती है . क्या हम इसका ठीकरा आज की युवा पीड़ी पर थोक कर इसे ठीक करने की जिम्मेदारी भी उनपर डाल कर निश्चिंत हो जाए .
कितनी बार हमने उनसे उनका मित्र बन कर उनके तनाव को समझा है या हमेशा उन्हें प्रतियोगिता मैं आगे बदते रहने का दबाव देते देते कभी उन्हें अपना कन्धा भी दिया हो ताकि वो रो सके . कितनी बार हमने उनकी अपनी बातों को प्राथमिकता दी हो और उनकी भावनों का आदर किया हो ? कितनी बार हमने उनके साथ वक़्त गुजर कर अछ्चे और बुरे बातों की पहचान कराई हो ....जब हम उन्हें उंगली पकड़ा कर उनके बचपन का मार्गदर्शन करते है तो क्यों उनके हमारे कद के बराबर आ जाने पर उनपर उनसे बेपरवाह हो जाते हैं और उनका दोस्त बन कर उनके
हमसफ़र होने की बजे एक पुलिसिया की जिम्मेदारी निभाते हैं .
एक बहुत चर्चित पर दबीजबान का विषय जो आज के आधुनिकता और तनावपूर्ण होती जिंदगी से पनप रही लाइव इन रिलेशनशिप . सम्युक्तापरिवार के लुप्त होने , करियर और प्रोफेस्सिओं main गला काट प्रतिस्पर्धा , असुरछा की भावना , भौतिक प्रगति की प्राथमिकता , क्रितीम माहौल की मजोबूरी और इकोनोमी पर निर्भर आपनो की नजदीकियां आज के समाज को एक नयी दिशा मिल रही है . पाश्चात्य संकृति का प्रभाव , घटते जा रहे शहरों के फासले , कम होती जा रही नर - नारी की दूरियां और जल्द ही बहुत कुच्छ प् लेने का बढता तनाव हमारी मानसिक और शारीरिक छमता से भी कहीं ज्यादा कुछ कर गुजरने का दबाव बनता है .
हाल में हुई फैशन माडलों की मौतों , कॉर्पोरेट जगत में बढ़ते सेक्सुअल हरस्समेंट के केसेस , नित नए उभरते स्केंदल्स और टीवी चैनलों पर टूटे बनते रिश्तों की मसालेदार कहानियां समाज का खोखलापन ही जाहिर करता है जिसे हम शायद एक शालीनता की चादर ओडे हमेशा स्वीकार करना नहीं चाहते हैं . मौलिकता की दुहाई देते संस्कृति की आड़ में युवायों पर नकेल कसने की धरम के ठेकेदारों की पोंगापंथी के बीच हम कहीं भूल रहें हैं बदलते समाज को समझ कर उसे अच्छी दिशा दे पाने की जिम्मेदारियां . युवा स्वंय संघर्ष कर आपना रास्ता बना रहा है उसे सही या गलत जाने बिना , अपने समाज के अनुसार . पबों में बदती भीड़ अब सिल्वर स्पून लिए लोगों से कहीं ज्यादा केरीयर के पायदान पर चड़तें होनहार लोगों की है
शहरों में उन्च्ची इमारतों के बीच , मनी ट्रान्सफर का वेट करते पेरेंट की छाया के बिना , जीवनसाथी चुनने में घुसी उनकी नाक और आपने बड़ों की रिमोट -चौकीदारी से दूर अकेलेपन का बढता अहसास दोठे युवक प् लेते हैं एक दुसरे में मानसिक निर्भरता की जरूरत जो बदल जाती लाइव इन रिलेशनशिप . वर्षों से लोग परदेश निकल जाते थे और इकठा रह कर गुजराकरते थे ताकि बहुत कुच्छ बचा कर लौट सकें आपने गावं . पर आज जब लड़कियों और लड़कों के कामों और छमताओं में कोई अन्तर ही नहीं रहा और काम करने वाली जगहों में १० से १२ घंटें साथ रहना अब हकीकत है , तो एक छत के नीचे साथ रहा कर बिना आज़ादी खोये क्यों नहीं रह सकते है ? यह सवाल आज लाइव इन रिलेशनशिप के तौर पर समाज में बहुत गहरी पैठ बना रह है चाहे हम सब इसे मान्यता उपरी तौर पर न दे पाए और नैतिकता का आडम्बर पहने इसे आधुनिकता के नाम पर नकारते रहें . पर इससे होने वाले परिणामों को हम नजरंदाज़ नहीं कर सकते .क्योंकि मानसिक निर्भरता को शारीरिक निभरता बनने में ज्यादा समय नहीं लगता है.
तो फिर लाइव इन रिलेशनशिप क्या सामाजिक जरूरत है या सामाजिक समस्या ? आज ये सोचना है की यह एक जरूरत बनी कैसे ?. कोई भी जरूरत अपनी निर्धारित सीमा के पार जाने पर समस्या तो बन ही जाती है और इन समस्यों को न रोका जाए तो सामाजिक कुरीतियाँ बन जाती है . क्या हम इसका ठीकरा आज की युवा पीड़ी पर थोक कर इसे ठीक करने की जिम्मेदारी भी उनपर डाल कर निश्चिंत हो जाए .
कितनी बार हमने उनसे उनका मित्र बन कर उनके तनाव को समझा है या हमेशा उन्हें प्रतियोगिता मैं आगे बदते रहने का दबाव देते देते कभी उन्हें अपना कन्धा भी दिया हो ताकि वो रो सके . कितनी बार हमने उनकी अपनी बातों को प्राथमिकता दी हो और उनकी भावनों का आदर किया हो ? कितनी बार हमने उनके साथ वक़्त गुजर कर अछ्चे और बुरे बातों की पहचान कराई हो ....जब हम उन्हें उंगली पकड़ा कर उनके बचपन का मार्गदर्शन करते है तो क्यों उनके हमारे कद के बराबर आ जाने पर उनपर उनसे बेपरवाह हो जाते हैं और उनका दोस्त बन कर उनके
हमसफ़र होने की बजे एक पुलिसिया की जिम्मेदारी निभाते हैं .
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