लोग कहते है हर दिल में खुदा का घर है , भगवान हर इंसान में रहता है ,
फिर क्यों इस कदर उसमें नफरत आती है और शैतान चले आते हैं .
विद्वान् सिखाते है की गीता और कुरान अमन का सबक बताते हैं ,
तो फिर हम कैसे गोलियों और बारूदों की भाषा सीख जाते हैं
.
हर दुआ में ,हर पूजा में , हम कहते हैं की "वोह" हर जर्रे जर्रे में है,
तो फिर एक टुकडे जमीन पर "उसके" लिए क्यों सब लड़ जाते हैं
राम भी "वह" है , रहीम भी "वह" है , हम सब "उसके" बन्दे हैं ,"वोह" हम सबका मालिक है
तो कौन हैं वे लोग ,जो "उसके" नाम पर हमें अलग , अलग कर जाते हैं ?
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