Saturday, March 5, 2011

हर गलियों हर बस्तियों से चीखता चिल्लाता इंक़लाब चाहिए


अख़बारों में सहमा सिमटा , आम इंसान की ,बंद होठों  की  जुबान
सत्ता के लुटेरो  के बीच  , इंसानियत  क्यों इतनी शर्मसार हो जाती है  !
 नील , टिगरिस  और यूफेरतेस  नदियाँ  क्यों  उफन जाती है ,
,जनता की भूख ही ही क्रांति है और यही इतिहास बनाती है !


किसी  सूने आँचल से और कोई ,सूनी  मांग  चिल्ला कर सवाल पूछती है 
किसी युवक का  भूखे पेट ; सडकों पर आकर यही प्रश्न  दोहराते है  ,
किसी वृद्ध की पथराई आँखों से ना जाने कितने प्रश्न उठते है ,
तब सत्ता के शिखर पर मदहोश हुए सर क्यों शर्म से झुख जातें   है .


गंगा , ब्रह्मपुत्र  और कावेरी की मौजों से उबलता  वही उफान चाहिए 
हर गलियों हर बस्तियों से चीखता चिल्लाता इंक़लाब चाहिए .
बडती महंगाई , बडती बेकारी , लूट खसोट का खुला बाज़ार 
सरे आम मुल्क को आज  सडकों पर इन सबका जवाब चाहिए !!

1 comment:

  1. aapkee is dard bharee kavita ka kuchh to asar aaj dikh raha hai anna hazare ke roop mai kranti ka nayak aur desh kee yuva peedhee ka unke peechhe khada hona shubh sanket hai

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