Sunday, January 30, 2011

ग्रामीण इलाकों में ई-प्रशासन


ग्रामीण इलाकों  में ई-प्रशासन   

ई-प्रशासन पर जेहां हम तकनिकी , बजट , योजनायों और संसाधन पर सारा ध्यान केन्द्रित कर रहें हैं और बहस हो रही है वहीँ हमें यह भी देखना है की इसका लाभ उठानेवाली जनता उतनी जागरूक हो रही है खासकर ग्रामीण इलाकों में . भारत में लगभग 72% फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है।

ग्रामीण इलाकों की मुख्य चुनोतियाँ  

विकासशील देशों में महिलायों और बच्चों के प्रति बुनियादी सुविधाएँ - शिक्षा , स्वास्थ्य , जागरूकता और अधिकार अभी भी संतोषजनक नहीं है और इस दिशा में विकास अभी भी बहुत कम ही है. सरकारी संस्थाओं के लंबे चौड़े दावों के बावजूद ग्रामीण भारत शिक्षा, जल वितरण, जीवन प्रत्याशा, बिजली की उपलब्धता जैसे बुनियादी क्षेत्रों में पीछे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों में से 49 प्रतिशत भारत में हैं। अर्थव्यवस्था से जुड़े तमाम बड़े-बड़े दावों के बावजूद भारत में बच्चों की कुपोषण से होने वाली मौतें बढ़ती ही जा रही हैं। देश में एक सेकंड के भीतर 5 साल के नीचे का एक बच्चा कुपोषण की गिरफ्त में आ जाता है। प्रति वर्ष विकासशील देशों में 5 करोड़ महिलाओं का प्रसव बगैर किसी प्रशिक्षित चिकित्सीय पेशेवर की देखभाल के होता है। विकासशील देशों में हर साल 80 लाख 80 हजार नवजात शिशु या बच्चे उन बीमारियों से मरते हैं जिनके उपचार सहज ही संभव है

शिक्षा के लिहाज से तो बच्चों की हालात कुछ ज्य़ादा ही पतली है। देश की 40 फीसदी बस्तियों में तो स्कूल ही नहीं हैं। 48 प्रतिशत बच्चे प्राथमिक स्कूलों से दूर हैं। 6 से 14 साल की कुल लड़कियों में से 50 फीसदी लड़कियां तो स्कूल से ड्राप-ऑउट हो जाती हैं। भारत के ग्रामीण इलाके में 29 फीसदी पुरुष और 53 फीसदी महिलाएं निरक्षर हैं।  भारत की साक्षरता दर 64.8 फीसदी है।  ग्रामीण भारत (58.7 फीसदी) में साक्षरता शहरी भारत(79.9 फीसदी) की अपेक्षा कम है।   भारत में पुरुष साक्षरता की दर(75.3 फीसदी) स्त्री साक्षरता की दर(53.7 फीसदी) से ज्यादा है। देश की कुल 22 फीसदी मानव बस्तियों में बच्चों को अपर-प्राइमरी की पढ़ाई के लिए घर से औसतन 3  किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। देश में 50 फीसदी से ज्यादा लड़कियां स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। देश में बाल श्रमिकों की संख्या अनुमानतः 6 करोड़ है।  6-14 साल के आयुवर्ग के साढ़े तीन करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। देश के ग्रामीण इलाकों में केवल 45.8  फीसदी लड़कियां और 66.3  फीसदी लड़के स्कूली शिक्षा पूरी कर पाते हैं ।

 इ-गवर्नस में ग्रामीण महिल्याओं और बाल विकास को सम्मिलित करना और उनकी सक्रिय भागीदारी बनाना  : भारत ,जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक राष्ट्र है ,में स्वतंत्रता के ६३ वर्षों बाद भी भारतीय नारी लोकतान्त्रिक प्रकिर्या में पीछे छूट गयी है .भारतीय संविधान द्वारा स्त्री -पुरूष को समान दर्जा दिए जाने के बावजूद देश की महत्वपूर्ण राजनैतिक संस्थाओं में स्त्री की भागीदारी दस प्रतिशत से भी कम है . महिलाओ की राजनिती में भागीदारी आरक्षण से नहीं बढाई जा सकती है | उदाहरन के लिए हमारे पंचायत कई जगह तो महिलाए कभी पंचायत का मुह भी नहीं देख पाती है और पुरुष ही सत्ता चलते है. प्रतिनिधित्व मात्र से भागीदारी नहीं होती .

 सार्वजनिक सेवा वितरण प्रणाली का उन्नत तकनीकी द्वारा नागरिकों को सिर्फ उपलब्ध  ही नहीं कराना है  बल्कि सरकारी कर्मियों और नागरिकों में बेहतर संबध और सम्पर्क भी बनाना होगा खासकर महिलायों और बच्चों के लिए  सरकारी तंत्र को जिम्मेदार बनाते हुए मानवीय संपर्क पर जोर होना चाहिए .  54% गाँव चिकित्सा केंद्र से 5 किलोमीटर दूर है और 27% गाँव चिकित्सा केन्द्रों से 10 किलोमीटर दूर हैं. दसवीं योजना के तहत ग्रामीण विकास कार्यकर्मों के लिए Rs. 77474 करोड़ का प्रावधानकिया गया है जो नौवीं योजना के Rs. 4287 करोड़ से कहीं ज्यादा है . आज देश की केवल 37.2 प्रतिशत बैंक शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और देश की केवल 40 प्रतिशत जनसंख्या के पास बैंक खाता है। लघु एवं कुटीर प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना से ग्रामीण स्थानीय कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्द्धन से बेहतर आय अर्जित कर सकते हैं. और अगर हम इसे इसकी योग्यतानुसार महत्व देते हैं तो हमें पता चलेगा कि इसमें इतनी क्षमता है कि यह ग्रामीण आजीविका के अवसरों एवं रोज़गार में प्रभावशाली ढंग से सुधार ला सकता है

 जीवन निर्वाह की दैनिक जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे ग्रामीण समुदाय को इ-गवर्नस के प्रति उत्साहित करना और विश्वास दिलाना की यह विकास का एक अहम् हिस्सा है  . देश की  41% जनता विश्व निर्धारित  गरीबी रेखा के नीचे है .  पूरी दुनिया में 24.6 करोड़ बाल मजदूर हैं, जबकि केंद्र सरकार के अनुसार देश में 1.7 करोड़ बाल मजदूर हैं, जिनमें से 12 लाख खतरनाक उघोगों में काम करते हैं। देश के कुल ग्रामीण परिवारों में किसान परिवारों की तादाद 60 फीसदी है और इसमें 48 फीसदी परिवारों पर कर्ज है। साल 1991 से 2001 के बीच भारत में  करोड़ 30 लाख लोगों ने ग्रामीण इलाके से पलायन किया ।  सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगातार ऊंची बनी होने के बावजूद भारत अपनी ग्रामीण जनता की जरुरत के हिसाब से मुठ्ठी भर भी नये रोजगार का सृजन नहीं कर पाया है केवल 57 फीसदी किसान स्वरोजगार में लगे हैं और 36 फीसदी से ज्यादा मजदूरी करते हैं। इस 36 फीसदी की तादाद का 98 फीसदी दिहाड़ी मजदूरी के भरोसे है. महिलायों और बच्चों की अनिवार्य भागीधारी . प्रतिनिधि हो जाने से भागीधारी नहीं हो जाती .जमीनी तौर पर ग्रामीण नागरिकों खासकर महिलायों द्वारा संचालन.  साल 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल श्रमशक्ति की तादाद 40 करोड़ है जिसमें 68.37 फीसद पुरुष और 31.63 फीसद महिला कामगार हैं।  तकरीबन 75.38%  फीसद महिला श्रमशक्ति खेती में लगी है

विविध समुदायों की विविध जरूरतों , विविध भौगालिक इलाकों की बुनियादी जरूरतों का समावेश और उनकी उपयोगिता पर ध्यान –:  2001 के  जनसँख्या के अनुसार 72.1% जनता  करीब 638,000 गाँव और 27.8% देश के 5100 शहरों और 380 मेट्रो में रहते हैं . साल 2004–05 के आंकड़ों के अनुसार देश के ग्रामीण गरीब लोगों की कुल तादाद में  80% संख्या अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की है। साल 1993–94 और साल 2004–05 यानी कुल दस सालों की अवधि में खेतिहर मजदूर परिवारों की गरीबी के लिहाज से आंकडे में कोई खास परिवर्तन नजर नहीं आता। ग्रामीण गरीब परिवारों में ऐसे परिवारों की संख्या 41% फीसदी पर स्थिर है देश का 60 फीसदी हिस्सा अलग अलग तीव्रता के भूकंप का आशंकित क्षेत्र है। ठीक इसी तरह देश के 4 करोड़ हेक्टेयर खेतिहर इलाके  में बाढ़ आने की आशंका रहती है, देश के 8 फीसदी इलाके में चक्रवात और 68 फीसदी इलाके में सूखे की आशंका होती है।तकरीबन 3 करोड़ लोग हर साल प्राकृतिक आपदा से प्रभावित होते हैं।


ग्रामीण इलाकों में के लिए 5  स्तम्भ योजना होनी जरूरी है जो जमीनी स्तर से शुरू होनी चाहिए  : 
5Es of reverse E-Governance .
Education , Employment, Empowerment, Easiness and Enablement. 
 
1 : Education & Awareness शिक्षा और जागरूकता
  • स्कूली शिक्षा में विशेष  ध्यान . पाठ्यपुस्तकों में समावेश 
  • योजनागत ढंग से ग्रामीण इलाकों में प्रोढ़ शिक्षा और विशेष प्रशिक्षित कार्यकर्मों द्वारा प्रशिक्षण . नयी पीढ़ी को शुरुवात से ही शिक्षण
  • सामुदायिक कार्यकर्मों ,उत्सवों , मेलों में प्रचार
2: Employment and Income Opportunities रोजगार और आमदनी के साधन  
ü  सरकारी और सामाजिक सुविधायों और रोजगार के अवसरों की दैनिक जानकारी और वयवस्था  
ü  ग्रामीण उत्पादनों के खरीद बाजार और मंडियों से सीधा संपर्क  E-सेवायों को आकर्षक बनाएगI  सरकारी और गैर सरकारी कार्यों , योजनायों , सूचनायों और आंकड़ों का समन्वय


3: Empowerment and Cooperationअधिकार और सहयोग
  • बुनियादी सेवायों जैसे आमदनी , पेयजल , प्रसव और बालस्वस्थ्य पर जानकारी
  • शिष्ट और मैत्रीपूर्ण उत्तरदायी सरकारी प्रशासनिक तंत्र 
4: Easy Accessibility and Usability सरल और सुलभ  उपलब्धता  और उपयोग 
  • मोबाइल आधरित काल सेंटरों द्वारा  स्थानीय भाषा में सेवायों को उपलब्ध कराना
  • संचालित इ-कम्युनिटी सेण्टर  , दृश्य और चित्रों के माध्यम से जानकारियो की सुविधा , मौखिक भाषा में इ-सेवायों का रूपांतर 
  • कम और विभागीत दरों पर इ-गोवेर्नंस के सुविधाएँ  , कंप्यूटर और इन्टरने:ट :
5: Enabling capability and competency  सक्षमता और योग्यता का निर्माण 
  • समयानुसार समय समय पर  योजनायों की सफलता की समीक्षा , सरकारी और नागरिकों का पुन:प्रशिक्षण , तकनीकी और विषयों का पुन:विकास और लाभ की उपलब्धता की समीक्षा 
  • सामाजिक रूप से पिछड़ी महिलायों पर विशेष ध्यान प्रशिक्षण और पुरस्कार .अशिक्षा और अधिकारहीन महिलायों के लिए विशेष कार्यकर्म 
  • विविध समुदाय की विविध जररूतों के अनुसार विषयों का विकास
राष्ट्रीय ई - शासन की परिकल्पना  कहती है की “"सभी सरकारी सेवाओं को सार्वजनिक सेवा प्रदाता केन्द्र के माध्यम से आम आदमी तक पहुँचाना और आम आदमी की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने लिए इन सेवाओं में कार्यकुशलता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना ई-शासन का उद्देश्य है।"ई-शासन नागरिक सेवाओं का रूपांतरण कर सकती है, नागरिकों के सशक्तीकरण के लिए सूचनाएँ प्रदान कर सकती है, सरकार में उसकी सहभागिता संभव बना सकती है और आर्थिक एवं सामाजिक अवसर का लाभ उठाने के लिए उन्हें सक्षम बना सकती है। संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी उपकरण पुराने संस्थागत ढ़ाँचें में नये आयाम जोड़ रहा है। देश में प्रभावी ई-शासन के लिए सूचनायुक्त और सहभागी समुदाय का होना बहुत ज़रूरी है.

इन सबके लिए जरूरी है विपरीत ई -प्रशासन योजना जिसे मैंने  5 स्तंभों में बांटा  है जो जमीनी स्तर से बुनियादी सुविधायों के विकास को लेकर होनी चाहिए नहीं तो यह सिर्फ एक महत्वाकांक्षी योजना बन कर रह जायेगी या फिर एक स्वपन . ई -प्रशासन एक क्रांतिकारी  परिवर्तन लायेगा  पर आवश्यक है देश के नेता और सरकारी अधिकारी इसे समर्पित मानसिकता के साथ लागू करें . यह भी ध्यान रखना है की इसका लाभ सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों , ग्रामीण इलाकों और जरूरतमंद लोगों तक पहुंचे . सिर्फ तकनीकी कुशलता  और योजना बना लेना ही प्रयाप्त नहीं है , बल्कि .ई -प्रशासन की सफलता सामाजिक उत्थान  के सफल प्रयासों पर निर्भर करता है

Poonam Shukla

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