मुन्नी बदनाम हुई या भोजपुरी बदनाम हुई..
यह सवाल मेरे जहन में आ रहा है...क्यों आजकल हिंदी सिनेमा में भोजपुरी को अश्लील आयटम नाच के तौर पर पेश किया जा रहा है. भोजपुरी और उसके अलग रूप में बोली जाने वाली लोक भाषाएँ उत्तर भारत की संस्कृति और ऊँचे दर्जे के साहित्य से समृद्ध रही है. यह भाषा सिर्फ उत्तर भारत में ही नहीं ,सूरीनाम , गुयाना , ब्राज़ील ,त्रिनिदाद , फिजी , मौरीसस , साउथ अफ्रीका और यैसे कई देशों की भाषा है. बंगकोक की गलियां हो या लन्दन की सड़कें. ..या फिर कोई कैरीबियन देश हो ..भोजपुरी के बोल हमेशा उस संस्कृति का अटूट हिस्सा रही है. ..देश के कितने ही महान काव्य इस भाषा में रचे गए है.....देश की यही एक लोकभाषा है जो हर पचास मील पर एक नए रूप में बोली जाती है.पर हिंदी सिनेमा जिसने हिंदी को लोकप्रिय करने में एक अमुलनीय योगदान किया है ...भोजपुरी की तस्वीर कुछ थीं नहीं पेश की जा रही है. चाहे कोई माने या न माने , भोजपुरी को हिंदी सिनेमा ने एक नौटंकी गीत का अश्लील रूप दे दिया है.....
वैसे आयेटम डांस फिल्म का हिस्सा रही है..जैसे शोले की "महबूबा महबूबा" या फिर तेजाब का " एक दो तीन चार " या फिर चाइना गेट का छम्मा छम्मा ( उर्मिला मातोंडकर) पर भोजपुरी के नाम पर ठुमके लगाने का हिट मसाला आजकल बहुत चल रहा है . चोली के पीछे क्या है . . ( राजस्थानी धुन पर था शायद) ....माधुरी दीक्षित के खलनायक ( १९९३) फिल्म के इस गाने ने देश को चोंका कर रख दिया था.और इस पर काफी चर्चा भी हुई थी. इसका सबसे ज्यादा प्रचार
हुआ शिल्पा शेट्टी के "शूल" ( १९९९) के ठुमके से " में आई हूँ ऊपी बिहार लूटने". इस गीत ने भोजपुरी के नया हिट मसाला फार्मूला दे दिया. ससुर बेटा और बहु का ( अमिताभ , अभिषेक और ऐशवर्या )
का "कजरा रे कजरारे" ( बंटी और बबली २००५) तो मनो देश का सबसे लोकप्रिय नाच हो गया था और लोग ऐश्वर्या के हर अदा पर झूम उठे थे . बिपाशा बासु का " बीडी जलाई ले " ओमकारा में ने शायद भोजपुरी को आयेटम डांस ब्रांडेड कर दिया.
यना गुप्ता का "बाबूजी धीरे चलो " दम में इस नाच ने एक नया निम्न स्तर का आयाम दे दिया.
मैंने यहाँ पर नौटंकी लड़कियों जैसे राखी सावंत की आयेटम नंबर को प्राथमिकता नहीं दी है. जब बॉलीवुड की जानी मानी हस्तियाँ भोजपुरी के इस तरह के धुन पर कम कपड़ों में जबरदस्त ठुमके लगाते हैं ( शायद सेंसर बोर्ड भोजपुरी के नाम पर लचीला हो जाता है ) तो यही सन्देश जाता है की भोजपुरी मात्र एक नौटंकी गीत है.

गंगा मैय्या तोहे पियरी चढैबो ( १९६२) में पहली भोजपुरी फिल्म बनी थी. आज दुनिया के बाहर बसे करीब २०० मिल्लियन लोगों की भोजपुरी दूसरी राष्ट्र भाषा है . कई बार यह भी सोचती हूँ की हिंदी सिनेमा को क्यों दोष दिया जाए . जिस तरह बिहार और ऊपी में आये दिन न्यूज़ चैनलों पर नेताओं द्वारा भीड़ जुटाने के लिए नौटंकी की जाती है या फिर बी ग्रेड की भोजपुरी फ़िल्में लगाई जाते है....समाज को सन्देश तो गलत जाता ही रहेगा.
वक़्त आ गया है की भोजपुरी को इज्ज़त का दर्ज़ा दिया जाए और सही संस्क्रीती और सभ्यता का भी प्रचार किया जाए . यह भी तब जब अधिकाश हिंदी फिल्मों के लेखक भोजपुरी से हैं.
मुन्नी बदनाम हुई या भोजपुरी बदनाम हुई....
इसकी जिम्मेदारी हम सब पर है और इसका हल झंडू बाम लगा कर दुनिया को कोसने से नहीं बल्कि भोजपुरी के सही प्रचार में है
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