Saturday, April 30, 2011

यह विश्वास क्रांति माँगते हैं..

हमारी उम्मीदें हैं आसमान की ओर 

जैसे किसान को होती है घुमड़ते बादलों से



भक्तों की आस्था है नभमंडल के देवताओं से ,

हर वक़्त इसी तरह स्वाति बूंदों की टकटकी लगाये

चातक जैसी जनता की श्रधा है.....


इस दलदल की राजनीती में कोई तो
 बेदाग होगा,

जमीन की लूटमार में कोई तो नेता 
"जमीनी" होगा

पर बढ़ते गए इन सपनों के दायरे...

कौन कहे यह सपने क़ुरबानी माँगते हैं .

निष्क्रियता की चादर ओढ़े देश में ,

यह विश्वास क्रांति माँगते हैं..

इस मिट्टी की कीमत बनाये रखना .

भ्रष्ट राजनीती के अंधियारों में तुम ईमान की  मशाल जलाये रखना 
जिसके लिए कुर्बानियां दी है लोगों ने ;उस देश का हाल बचाए रखना ,

बेच रहें हैं तिरंगे की अस्मत ,  चंद लोग जिन कुर्सियों की ताक़त पर , 
तुम कल के सूरज बनकर  ; उन कुर्सियों पर  अपना हक जताए रखना 

घुटने टेक रही  जनता आज देश के हालात पर , हर ओर से उम्मीदें  हारकर 
उनका सहारा बनकर तुम ,  उनके आशायों  की  रोशनी  जगाये रखना .

इस देश की पावन मिट्टी शहीदों के लहू से सींची  गयी है ,
इस कुर्सियों के हर लालच से बचकर ;इस मिट्टी की कीमत बनाये रखना .

Saturday, April 9, 2011

Dedicated to Fight for Corruption Movement :


Dedicated to Fight for Corruption Movement :


पर याद रखना की इसी कमजोर भूख ने  सडकों पर आकर सरकारें हिलाई है ....
पेट के गहन  अँधेरे में शांत भूख की आवाजों ने इतिहास के पन्ने बदले हैं .  
हमारे निवाले छीन छीन कर बनते आपके महलों पर नजर नहीं डाली हमने                    
 पर याद रखिये ,पानी पी कर ठंडी होती  भूखों से कई देशों के आसमान जले हैं
    
         


  





Aaj ke  Yuvaon ko samarpit


 नहीं देखी गज़नी और चंगेज़ की लूट ,
तो अपने ही नेताओं द्वारा लूटता हिंदुस्तान देख .
न सूनी नादिर के हमले , तो दंगों और आतंक से तड़पता हिंदुस्तान देख .
याद नहीं विभाजन की काली रातें , वोह गुलामी के काले दिन ,
तो गरीबी , भूखमरी और बेकारी से कराहता हिंदुस्तान देख .


यदि चाहिए वह देश तो हर कतरे मैं खून का उबाल चाहिए ,
गंगा कावेरी के मौजों से उछलता चीखता इन्कलाब चाहिए ,
 हिमालय को पिघलाता , हिंद्सागर से उफानता
 हर गली -कुचे मैं क्रांति का एलान चाहिए


आज़ादी मिली तो भी क्या , आज़ादी की जंग अभी भी जारी है
बाहरी ताकतों से कहीं ज्यादा अन्दूरनी खतरा भारी है
मंजिल अभी दूर है , रास्ता बहुत ही मुस्किल ,
उठ , अर्जुन ! उठा गांडीव ..देर न कर ..
विश्राम की नहीं बारी है


बहुत हो गया ये तमाशा , अब मत फंसों
भ्रस्त और कुटील नेताओं के इन झूठे नारों में .
 प्रगती के वादे थोथें हैं …
 यह कुर्सियों की नौटंकी है ,
 उठ ..आग लगा दो गन्दी राजनीती की इन दीवारों में


गीता के श्लोक तेरे गीत हों , कुरान तेरी जुबान हो ,
 हर मुठ्ठियों में चेतना आये ,
 उठे क्रांति हर बस्ती , हर गलियारों में .
अख़बारों में सहमा सिमटा , आम इंसान की ,बंद होठों  की  जुबान
सत्ता के लुटेरो  के बीच  , इंसानियत  क्यों इतनी शर्मसार हो जाती है  !
 नील , टिगरिस  और यूफेरतेस  नदियाँ  क्यों  उफन जाती है ,
,जनता की भूख ही ही क्रांति है और यही इतिहास बनाती है !

 हर गलियों हर बस्तियों से चीखता चिल्लाता इंक़लाब चाहिए

किसी  सूने आँचल से और कोई ,सूनी  मांग  चिल्ला कर सवाल पूछती है
किसी युवक का  भूखे पेट ; सडकों पर आकर यही प्रश्न  दोहराते है  ,
किसी वृद्ध की पथराई आँखों से ना जाने कितने प्रश्न उठते है ,
तब सत्ता के शिखर पर मदहोश हुए सर क्यों शर्म से झुख जातें   है .

गंगा , ब्रह्मपुत्र  और कावेरी की मौजों से उबलता  वही उफान चाहिए
हर गलियों हर बस्तियों से चीखता चिल्लाता इंक़लाब चाहिए .
बडती महंगाई , बडती बेकारी , लूट खसोट का खुला बाज़ार
सरे आम मुल्क को आज  सडकों पर इन सबका जवाब चाहिए !!

Poonam Shukla
For more details :http://mspoonamshukla.blogspot.com/