Thursday, July 19, 2012


Womaniya-वोमनिया -Kya yahi hai "" Womaniya 



वोमनिया ...हो  वोमनिया  ,..आ  हा  वोमनिया ..यह गीत तो सुनाने लगे ..
गुवाहटी से गुडगाँव ..अपराध और  बहस ..
आईये कुछ आंकड़ों पर नज़र डालें ...पता नहीं क्या यही है " वोमनिया " ???

Woman World Wide

Women and Poverty 
70% of the 1.2 billion people living in poverty are female
Women as Workers

Women do more than 
  • 67% of the hours of work done in the world
  • Earn only 10% of the world’s income
  • And own only 1% of the world’s property
  • The value of unremunerated work was estimated at about $16 billion, from which $11 billion represents theinvisible contribution of women
  • Women are paid 30-40% less than men for comparable work on an average
  • 60-80% of the food in most developing countries is produced by women
  • Women hold between 10-20% managerial and administrative jobs
  • Women make up less than 5% of the world’s heads of state
Women and Education
  • 60 % of the 130 million children in the age group of 6-11 years who do not go to school, are girls
  • Approximately 67% of the world’s 875 million illiterate adults are women3 out of 5 women in Southern Asia and
  • An estimated 50% of all women in Africa and in the Arab regionare still illiterate
Women and Health
  • Women account for 50% of all people living with HIV/AIDS globally
  • In the year 2000, there were
  • 80 million unwanted pregnancies
  • 20 million unsafe abortions
  •         5 lakhs maternal deaths
99% of these cases were reported in developing countries.

Woman in India
Child Sex Ratio (0_6 years)
The child sex ratio has dropped from
  • 945 females per 1000 males in 1991 to
  • 927 females per 1000 males in 2001
The United Nations Children’s Fund, estimated that upto 50 million girls and women are ‘missing’ from India’s populationbecause of termination of the female foetus or high mortality of the girl child due to lack of proper care

Women as Workers

Female share of non-agricultural wage employment is only 17%
Participation of women in the workforce is only
  • 13.9% in the urban sector
  • 29.9% in the rural sector
Women’s wage rates are, on an average
  • only 75 % of men’s wage rates and
  • constitute only 25% of the family income
In no Indian State do women and men earn equal wages in agriculture

Women and Education

Close to 245 million Indian women lack the basic capability to read and write.
Adult literacy rates for ages 15 and above for the year 2000 were
  • female 46.4%
  • male rate of 69%

Women and Health
  • The average nutritional intake of women is 1400 calories daily.The necessary requirement is approximately 2200 calories
  • 38% of all HIV positive people in India are women yet only 25% of beds in AIDS care centres in India are occupied by them
  • 92% of women in India suffer from gynaecological problems
  • 300 women die every day due to childbirth and pregnancy related causes
  • The maternal mortality ratio per 100,000 live births in the year 1995 was 440
Crime against Woman in India

Female Foeticide

Female foeticide in India increased by 49.2% between 1999-2000
Source:NCRB ‘Crime in India, 1999-2000’

According to NCRB ‘Crime in India, 2002’  the following crimes were committed against women in India.
Rape
  • 16,373 women were raped during the year
  • 45 women were raped every day
  • 1 woman was raped every 32 minutes
  • An increase of 6.7% in the incidents of rape was seen between 1997-2002
Incest 2.25% of the total rape cases, were cases of incest

Sexual Harassment
  • 44,098 incidents of sexual harassment were reported.
  • 121 women were sexually harassed every day
  • 1 woman was sexually harassed every 12 minutes
  • An increase of 20.6% was seen in incidents of sexual harassment between 1997-2002
Importation of girls/Trafficking
  • 11,332 women and girls were trafficked
  • 31 women and girls were trafficked every day
  • 1 woman or girl was trafficked every 46 minutes
Kidnapping and abduction
  • 14,630 women and minor girls were kidnapped or abducted
  • 40 women and minor girls were kidnapped every day
  • 1 woman or minor girl was abducted every 36 minutes
Dowry Related Murders
  • 7,895 women were murdered due to dowry
  • 21 women were murdered every day
  • 1 woman was  murdered due to dowry every 66 minutes
Domestic Violence
  • 49,237 women faced domestic violence in their marital homes.
  • 135 women were tortured by their husbands and in-laws  every day
  • 1 woman faced torture in her marital relationship every   11 minutes
  • Domestic violence constitutes 33.3% of the total crimes against women
  • A steep rise of 34.5% in domestic violence cases was witnessed between 1997-2002
Suicide
12,134 women were driven to commit suicide due to dowry1,10,424 housewives committed suicide between 1997-2001 and accounted for 52% of the total female suicide victims
Source: NCRB, ‘Accidental Deaths and Suicides in India’, between 1997-2001

Kya yahi hai "" Womaniya "" ?? Ho womaniya ,.Aa .ha Womaniya...Ho Womaniya ???

Poonam shukla

Monday, July 2, 2012


यह मुठभेड़ फर्जी है या राजनीती और मानवाधिकार के नारे !!

शहीद वर्दियों का अपमान न करें ? 









छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के जंगलों में 28th जून देर रात सीआरपीएफ जवानों और नक्सलीयों के बीच जबर्दस्त मुठभेड़ हुई। इसमें 18 नक्सलीयों के मारे जाने की खबर मिली है। सीआरपीएफ के छह जवान गंभीर रूप से घायल हुए हैं। दंतेवाड़ा के इन जंगलों में रात को हुई यह मुठभेड़ करीब छह घंटे तक चली .छत्तीसगढ़ के बीजापुर में सीआरपीएफ और नक्सलियों के बीच हुए एनकाउंटर पर अब केंद्र सरकार और राज्य सरकार के मंत्रियों के बीच राजनीतिक 'मुठभेड़' चल रही है। केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत ने कहा है कि यह मुठभेड़ फर्जी है ! हम कितनी आसानी से सुरक्षा बलों के मनोबल को तोड़ देते हैं और शहीदों के खून की राजनीती के गंदे खेल में हर पल उस शहादत को अपमानित करते हैं. आखिर क्यों ? 

क्यों हम खाकी पहने वाले इंसान को सिर्फ सूखे पत्तों के तरह मरने वाली चीज समझ लेते हैं . आपको यह बता दें की जिस जगह सुरक्षा बल ने यह एनकाउंटर किया वह उस चिंतलनार के बेहद करीब है, जहां अप्रैल 2010 में नक्सलीयों ने सुरक्षा बल के कैंप पर हमला कर 75 जवानों को मार दिया था। तो कहां थे मंत्री महोदय उस वक़्त जब ७५ वर्दियां लहूलुहान हो गयी थी ? किस देश भर के गलियों में में छुपे थे मानवाधिकार की चिल्लपों कर अपनी दुकान चलने वाले ठेकेदार और टीवी पर बहस करने वाले बुद्धिजीवी वर्ग ? तब क्यूँ नहीं नहीं बनाई गयी समितियां और मुठभेड़ की समीक्षा की गयी ? मुझे यह बहस नहीं करनी है की क्या सही हैं या गलत ! 

किसी निर्दोष के खून की वकालत कोई भी सभ्य समाज कभी नहीं कर सकता पर यहाँ मुद्दा कुछ और है ? किन वातावरण और बंदिशों में पुलिस का जवान मौत से लोहा लेता है उसे नज़रअंदाज कर उसके हर काम की निंदा करना आज के आधुनिक समाज का फैशन है. 

भारत के करीबन 12 राज्यों के लगभग 125 जिलों में नक्सल ने अपना कब्ज़ा सा बना लिया है. भारत के गृह सचिव जी के पिल्लई के अनुसार नक्सल सालाना $300 मिलियन यानी 1400 करोड़ रुपया की उगाही करते है . यह गरीबों एवं आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई का दिखावा कर रहे नक्सल के किस आर्थिक विकास अजेंडा है ? सरकार के ही आंकड़े यह बताते हैं की 1980 से अबतक लगभग 11575 लोग नक्सल आतंक का शिकार हुए हैं जिसमे 6377 नागरिक , 2285 सुरक्षा बल कर्मी और सिर्फ 2913 नक्सलवादी हैं. प्रश्न है की इन 9000 नागरिकों और जवानों की मौत का मानवाधिकार कौन देख रहा है. ? इतनी मौतों की कौन सी जाँच की जा रही है ? 1980 से लेकर आज तक कितने कदम उठाये गए हैं ? 

'बच्चे और सशस्त्र विरोध' नामक अपनी वार्षिक रपट में संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि नक्सली बच्चों को दस्ता बनाकर अपना दायरा विस्तृत कर रहे हैं.सशस्त्र नक्सली बच्चों की नियुक्ति करने के साथ ही उन्हें नक्सल आंदोलन के लिए बौद्धिक स्तर पर तैयार कर रहे हैं। बड़े स्तर पर अपने फैलाव के लिए नक्सली इन बच्चों का बाल दस्ता, बाल संघम और बाल मंडल बना रहे हैं. 

मानवाधिकार के बुद्धिजीवी क्या यह जानते है वर्षों से CRPF टुकड़ियाँ और पुलिस के जवान दंतेवाडा के बीहड़ जंगलों में बुनियादी नागरिक सुविधायों से दूर लगे हुए हैं और इस डर से की कब उनकी गाडी किस बारूदी सुरंग का शिकार हो जाए ? सरकार और नक्सल दोनों के बीच फंसे यह जवान बहनों की शादी , बुडी अम्मा की खांसी और अपने बड़ते बच्चों की मुस्कराहट के लिए तरसते हुए , अखबारों में नेताओं के भ्रष्ट काले कारनामें और बुद्धिजीवों की अनर्गल प्रलाप को भी जानते हुए इस लिए शहीद होने को तैयार हैं ताकि हम और आप काफी की चुस्कियां लेकर बहस कर सके. क्या इन सबका हल सिर्फ कानून और खाकी है ?

केंद्र सरकार नक्सल प्रभावित प्रत्येक जिले में विकास कार्यो के लिए अलग से प्रति वर्ष 55 करोड़ रूपए का अनुदान दे रही है . इनमें आदिवासी क्षेत्रों का संवेदनशील तरीके से विकास, पर्याप्त सुरक्षा बलों की तैनाती और राजनीतिक प्रक्रिया को मजबूत करना शामिल है.

जिस देश में सामाजिक रूप से अभी भी भारी विषमतायें हैं. 40 % जनसंख्या भी अनपढ़ हैं . 43 % बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. 42% आबादी गरीबी रेखा के नीचे है सार्वजनिक वितरण प्रणाली आधी आबादी तक नहीं पहुँच पा रहे है. भ्रस्टाचार से त्रस्त होकर देश के युवक बेकारी और हताशा के शिकार हो रहे हैं. देश के विकास कार्यों और योजनायों का लाभ जनता तक पहुँच ही नहीं पा रहा है जो आक्रोश को पैदा कर रहा है. 

कमरों में बैठकर नीति बनाने और बहस करने से बहुत अलग स्थिति गोलियों का सामना करनेवाले सुरक्षाबलों को झेलनी पड़ती है. राजनैतिक दलों के पास विकास का मुद्दा सिर्फ नारों में वोटों के लिए रहा गया है . जांत पांत , धर्म और सामाजिक संबधों में दरार की राजनीती खेल कर सत्ता के गलियारों में पहुँचने वाले नेताओं , आपराधियों के सहारे वोट बटोर कर कुर्सी हथियाने वाले और आये दिन घोटालों की समाचारों में महंगाई से परेशान जनता ...क्या इन सबका हल सिर्फ कानून और खाकी है ? क्या नक्सल समस्या का हल , विकास के नाम पर आबंटित हो रहे करोड़ों के फंड भ्रस्टाचार का शिकार तो नहीं हो रहे हैं ? क्या नक्सल समस्या का जीवित रहना राजनीती शतरंज की बिसात का असली मुद्दा तो नहीं है ? 

यह सभी स्वीकार करते हैं की विकास और आर्थिक समृधि ही नक्सल का हल निकाल सकती है. पर 2010 के एक सर्वे के अनुसार हमारी नारेबाजी और जवानों के शहीद होने पर घडियाली आंसू बहाने वाली सरकार और चाक चौबंद हो जाने का दावा करने वाला असहाय प्रशासन , की कारगुजारी चौकाने वाली है . 2006 के वन मान्यता कानून के तहत आदिवासियों को वन जमीन के आबंटन में ढिलाई बरती गयी . बिहार में मात्र एक तिहाई अधिकारों का निपटारा हुआ . नक्सल की जबरदस्त मार झेल रहे झारखण्ड में यह केवल 15 % ही था. कांकेर - छत्तीसगढ़ जहाँ आयेदिन नक्सल मुठमेड की खबरें आती रहती है , में 60 % जनसँख्या पिछड़े वर्ग की है. इसके बावजूद ग्रामीण रोजगार योजना का सिर्फ 5% बजट क्रियान्वित किया जा सका. यह सिर्फ कुछ उदहारण है. 

विकास योजनायों की हालत , विस्थापित एवं पुनर्वास जैसे गंभीर विषयों में उदासीन सरकार और भ्रस्टाचार में लिप्त राजनैतिक ढांचा ...क्या सिर्फ बंद हाथों में दिए गए हथियारों के बल पर ही नक्सल का हल खोजा जाएगा . 

आवश्यकता है एक सशक्त राजैतिक इच्छा शक्ति की, एक प्रभावशाली और सक्षम नेतृत्व की ,और संकल्प के साथ विकास और योजनायों को आदिवासियों के घर तक पहुंचाने की. शायद हम ऊँचे फ्लायोवर , मेट्रो रेल प्रोजेक्ट , छः आठ लेन वाले एक्सप्रेस वे में कहीं विकास ढूँढने लगे है और यह भूल गए है की भारत की ७०% से अधिक आबादी इन सबसे कहीं दूर दैनिक जीवन यापन की कशमकश में है. 

यदि शहरों को सुरक्षित रखना है तो इन सुदूर गावों और जंगलो में बसे लोगों को भी उनके माहौल में सुखी रखना होगा..क्यूंकि याद रहे ...शहर का विकास , इनके ही मुंह का कौर छीनकर , इन्हें ही विस्थापित कर , इन्ही की संसधानो की डकैती कर किया जा रहा है . 

सिर्फ कुछ और लहूलुहान होती खाकी वर्दियों की गिनती भर कर लेने से इस सामजिक समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता . यदि लड़ना है तो सरकार की उस वयवस्था से लड़ा जाए जो इन विकास को रोक रखे है . यदि आवाज उठानी है तो वहां उठायें जहाँ नीतियां और योजनायें बनाई जा रही है . यदि नष्ट करना है तो भ्रस्टाचार और सुस्त प्रणाली को नष्ट करें ....हथियारों से प्रश्न नहीं सुलझते . 

पर सवाल यह है की विगत 44 सालों से इस समस्या पर बहस हो रही है. हथियारों और वोट बैंक पर टिकी कुर्सियों के सौदागर इसका हल निकालना चाहेंगे या गोलियों से छलनी वर्दियों पर काफी की चुस्की ले रहे मानवाधिकार की दुकान चला रहे लोग इस समस्या की जड़ तक जाना चाहेंगे ???

By Poonam Shukla (पूनम शुक्ला )

Sunday, July 1, 2012


कांपते हुए लफ़्ज़ों का गीलापन छुपा नहीं सके ख़त में ,तुम मुस्कराहट भेजते हो ,और हम आंसू पढ़ लेते हैं
हमने सीख ली नदियों से,लहरों का पर्दा-दारी में बहना, ऊपर से हँसते रहते हैं , पर गहराई में हम रो लेते हैं
यह शहर भी अजीब है ,भाग दौड़ में खो जाते हैं मेरे दोस्त ,चंद लम्हों के लिए कई लम्हों का हिसाब करते है
पर उनकी मजबूरियों की मासूम उदासी की शोख अदाएं, मिलने के कुछ हसीन पल , बहलते हम खो लेते हैं .

poonam shukla


बिकती नैतिकता , भ्रस्टाचार की नौटंकी ,और कुर्सियों की खरीद से दूर में एक इमानदार बनूँगा !
लाचार संविधान , बेबस प्रशासन और गुलाम होते कानून का मैं एक सशक्त पहरेदार बनूँगा !!
हर गरीब की आस , हर भूखे की रोटी , उनके विकास का मजबूत ; मैं वह हिस्सेदार बनूँगा !
भले न देखी हो आजादी की जंग , पर शहीदों के लहू का क़र्ज़ चुकाता मैं सच्चा कर्जदार बनूँगा !!

सरकारी फाईलों और दफतरों की सीडीयों पर दम तोड़ती जनता का मैं एक सबल आधार बनूँगा !
नारों और राजनीती की चमक में बहकता कदम न बनकर , मैं खुद देश का एक समाचार बनूँगा !
लड़ सके इस व्यवस्था से और दिला सके न्याय , कमजोरों के लिए वोह ताक़तवर हथियार बनूँगा
टूटी छत ,अँधेरी रातें ,कम होती खुराक के बावजूद , मेहनत से , उन उंचाईयों का मैं हक़दार बनूँगा !

हम एवं समाज पर यह एक जिम्मेदारी है की यह लोग नक्सलियों और अपराधियों का हथियार न बने.. "
Poonam Shukla

Sunday, June 17, 2012


"" मैं भारत की तस्वीर हूँ ,कल के भारत के भविष्य की जननी हूँ ,
आँचल में दूध और आँखों में पानी , अब यह मेरी जुबान नहीं हैं .
"जय माता दी " चिल्लाने वालों मेरी आँखों में झांक कर देखो ,
मैं वही शक्ति हूँ , मुझे जीने दो !!
मैं अग्निपरीक्षा की सीता और जुए में हारी द्रौपदी नहीं हूँ,
पुरुष के अहंकार की गाली का हर शब्द अब मैं नहीं हूँ ,
मैं समाज का स्वाभिमान बनना चाहती हूँ , हर परिवार की शान बनना चाहती हूँ

हाँ ! मैं नारी हूँ
पर समाज की कमजोरियां नहीं हूँ मैं , मुझे जीने दे सके वह भगवान् चाहती हूँ ,
हाँ मैं नारी हूँ ,
पर बन्धनों से अलग कर सबला बना सके मुझे ,ऐसा मैं इंसान चाहती हूँ .
मुझे मेरी जीने की साँसे ना छीनो , मैं भी बढ़ने के लिए अपने हक का आसमान चाहती हूँ ."""

ऐसा अंदाज़ है के पिछले 30 सालों में 1.2Cr लड़कियों की मृत्यु जनम से पहले ही कर दी गयी .हर 12 seconds में भारत में कहीं न कहीं एक भ्रूण कन्या को ख़त्म कर दिया जाता है .15 Lakh लड़कियां ( 1.2 cr से ) यानि 13% अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाती. बाकि बचे लोगों में सिर्फ 90 lakh लड़कियां ही 15th जन्मदिन मनाती हैं .

23 Lakh वेश्याओं में 12 lakh -- करीबन 50% लड़कियां कम उम्र की हैं, 12000 बच्चों के सर्वेक्षण में 69% बच्चों ने किसी न किस प्रकार के यौन शोषण की बात स्वीकारी है . Year 2000 survey के अनुसार 51 lakh बंधुआ मजदूर हैं जिसमे 18 lakh वेश्यावृति में थी और 12 लाख लड़कियां देह तस्करी में शामिल की गयी 


Poonam Shukla
आंकड़ों के खेल में व्यस्त है देश के नेता , इस गणित के घटा जोड़ में उलझ गया है मेरा देश !
चुनाव हो या राष्ट्रपति , इन आंकड़ों के बदलते हर गुणा-भाग में फँस गया है मेरा देश !!!
विकास के आंकड़े कब का भूल गए , योजनायों के गणित फाईलों में खो गए ,
कुर्सियों की पाठशाला है , यहाँ के गठजोड़ो की गणित में "शुन्य" हो गया है मेरा देश !!!!


Saturday, May 5, 2012


मैं खोज रही हूँ " उसको" जो हर जगह व्याप्त है , पर खोज न पायी.
धर्मगुरुयों के द्वार खडी चीखती चिलायी , पर "उसे" खोज न पायी.

धर्मस्थलों की सीढ़ियों पर , व्यवसाव को फैलते देखा.
धर्म के ठेकेदारों को धर्म के नाम पर लूटते देखा .
बड़े बड़े भंडारे देखे , बड़े बड़े अनुष्ठान देखें
वहीँ किसी कोने पर लोगों को दाने दाने पर मरते देखा .

तर्कों में , प्रवचनों में , पाठों में , कृपाओं में ढूंढती रही ,
फिर भी दरबारों में , शिविरों में , "उसे " खोज न पायी.

हर ह्रदय में वह रहता है, पर हर ह्रदय को सिकुड़ता देखा
हर पुण्यों में वह मिलता है , पर हर पाप को बढ़ते देखा
हर जुबान उसकी है , पर हर जुबान को जहर उगलते देखा
हर कण कण में रहनेवाला वह , पर लोगों को भटकते देखा

हर इंसान में बसता है वोह , पर वहां भी उसे खोज न पायी
इस इंसानी बस्ती में , एक अदद इंसान भी खोज न पायी.

Poonam Shukla.
(यह भावनात्मक कविता सामाजिक स्तर पर है. किसी भी धर्म , धर्मगुरु या धर्मस्थल से संबधित नहीं हैं .The poem is on social subjects and does not indicate any specific religion, religious leader/person and Religious place.चित्र केवल साहित्यिक प्रतीकात्मक है .Image is only literary representation)

Sunday, March 11, 2012

Leadership : Rahul Vs Akhilesh :उत्तरप्रदेश चुनाव का नेतृत्व विश्लेषण


"We are not friends, we are just political acquaintances.हम  दोस्त नहीं  है   हम   सिर्फ राजनैतिक परिचित हैं " by Akhilesh on Rahul  while UP byelection Firozabad after defeat of His Wife

कुछ  महीनो पहले  उत्तरप्रदेश में हुए उपचुनाव में   राहुल  गाँधी द्वारा किये गए कांग्रेस प्रचार और कांग्रेस की वापसी का प्रतीक माने जाने वाले  इस उपचुनाव के  नतीजे में अपनी पत्नी डिम्पल   की करारी हार    के बाद  अखिलेश  यादव  ने  युध्ध की  घोषणा कर दी थी .... यह शुरुवात थी  " अखिलेश यादव विरुद्ध  राहुल गाँधी " के महाभारत की जो शायद तब राजनीती के जानकार भी नहीं समझ नहीं पाए . इस करारी शिकस्त ने अखिलेश को मानो बदल दिया हो   और  एक  आग  उनके  मन में लगी हो .


राहुल और अखिलेश :  दोनों ही आधुनिक भारत के यूथ ब्रिगेड , भारत की राजनैतिक विरासत में जन्मे और पले हुए , एक  कांग्रेस के राजकुमार  तो दुसरे समाजवादी पार्टी के युवराज , दोनों ही  उत्तरप्रदेश से सांसद . दोनों के हाथों उनकी पार्टियों के  चुनाव प्रचार की बागडोर . दोनों पर उनके पार्टी नेताओं का विश्वास  और प्रचार में खुली छूट .

अखिलेश की तरह ही राहुल ने अपने पार्टी के चुनाव प्रचार के नेतृत्व  आगे आ कर किया . कई विषम परिस्थितियों में , 22  साल से टूटी , लुप्त हुयी और सत्ता से दूर रही पार्टी को संभाला . उन्होंने भी काफी मेहनत की  200  से ज्यादा मीटिंग्स और दिन रात की यात्राएँ.  

अखिलेश , एक "अपने ही मोहल्ले गल्ली का बच्चा " का रूप लिए जेहां भी गए , और जब से Sept 2011 से उन्होंने साइकिल यात्रा शुरू की , सक्रिय युवकों की भीड़ उन्हें " भैया " कहते हुए जुटने और उमड़ने लगी. अखिलेश ने भले ही अपने भाषणों से कोई आग ना उगली हो  या पंच लाइन नहीं दी हो , लेकिन वे लोगों के हुजूम के बीच रहे , युवको से जिस तरह मिले , उनसे एक अपनापन रिश्ता सा बनाने लगे और उनके साथ पल बिताये , समाजवादी पार्टी की लहर सी बनने लगी .

अखिलेश ने सबसे प्रभावशाली अभियान का संचालन किया था . नियंत्रित पर अति सशक्त . उन्होंने विवेक पर निर्भरता रखी बजाये  भावनायों में बहने के. उन्होंने अपमानजनक या अपघर्षक शब्दों का प्रयोग नहीं किया . राहुल के किसी बी ग्रेड फिल्म की याद दिला देने वाले तमाशे के बिलकुल विपरीत प्रभावशाली प्रर्दशन करते रहे.   उन्होंने  D P यादव को पार्टी में शामिल करने का खुल कर  ; पर बिना क्रोध या अनियंत्रित  विरोध दिखा कर अपने प्रभाव को जाता दिया . उन्होंने किसी वोट  बैंक या आरक्षण को भी खुश करने में वक़्त बर्बाद नहीं किया . 

राहुल के   राष्ट्रीय व्यक्तित्व  की  छवि के  सीधे विपरीत अखिलेश ने जमीन से  जुड़े  होने की छवि का निर्माण किया . राहुल के नकारात्मक प्रचार  जो अधिकतर मायावती सरकार की बुराईयों और अन्याय पर निशाना  भर   था  , अखिलेश ने विकास के मुद्दों पर जोर देते  हुए " मुफ्त लैपटॉप" की बातें कर उत्तरप्रदेश की जनता में चुनावी वातावरण  को नया आयाम , नयी हवा देने की सफल कोशिश की .

भारी सुरक्षा घेरे में बंधे राहुल  , लकड़ी की बाड़ के उस पार जुटे  दर्शकों और भीड़ को मंत्रमुग्ध तो कर देते हैं  पर मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश बिना किसी ढोंग के अपनी  छवि  जनता के बीच उन्ही के गल्ली-मोहल्ले का बच्चा होने की बना लेते हैं  

राहुल में पूरे उत्तरप्रदेश में  भारी जुटी भीड़ को संबोधित करते हुए एक उल्लेखनीय इमानदारी  के कमी दिखाई देती है , जबकि दूसरी तरफ , अखिलेश यादव विनम्र, मिलनसार , पार्टी के बड़े और पुराने लोगों को हाथ जोड़ कर नमस्ते करते हुए नज़र आते हैं  पार्टी कार्यक्रतायों को उनके नाम से   अदभुत प्रवाह से संबोधित करते रहे हैं. राहुल हमेशा यह जताते रहे की उत्तरप्रदेश उनके लिए महत्वपूर्ण है और उनके सोच में हैं और वे दलितों की बस्तियों और झोपड़ियों में रात बसेरा करते रहे वहीँ अखिलेश दूर से बने चबूतरों से कभी नहीं बोले , सुरक्षा घेरे से कभी बंधे नहीं रहे और तेज़ चाल से नीचे उतर कर दर्शकों की भीड़ में जा घुसते रहे .

राहुल का प्रचार अभियान इतने सावधानीपूर्वक  बुना और रचा गया था की वे  अभियान की  सहजता और आकर्षण खो चुके थे . इस अभियान कार्यकर्म में कोई मुख्य उद्देश्य नहीं था जो प्रचार के अंतिम पल तक टिका रहता . विभिन्न और कई बार  विरोधाभाषी  विचार , भटके हुए आवेगों से  चुनाव अभियान प्रभावित हुआ . कई बार ऐसा लगने लगा था किसी भी तरह के मज़बूत आधार के अनुपस्थित होने की वज़ह से फोटो या टीवी कैमरों में आने के लिए कुछ हरकतों पर निर्भरता होने लगी है .

राहुल की आत्म धारणा थी की वे एक  सच्चे , जमीन से जुड़े राजनैतिक नेता है , जो कठिन विषयों पर भी बातें करते हैं , जमीनी समस्याओं को जान लेते हैं , सही समय पर कार्यवाई भी करते हैं . हवाई बातें और ऊँची आसमानी सपने दिखने वाले टेलीविजन कैमरों और पत्रकारों ने उन्हें हिंदी भाषी राज्य का महानायक बनाना शुरू कर दी . इन्ही भीड़ को राहुल  के दृष्टिभार्म ने  अपना वोटर मान लिया .

यह अब लगने लगा था की कांग्रेस का मुख्य चुनाव प्रचारक  और पार्टी का चेहरा एक हवा के बुलबुला सा हो रहा हैं , वास्तविकता के कठोर हवायों से काफी अलग और दूर........उन्हें तो यह भी नहीं पता चला  की , उनका प्रभाव  असल में  किसी भी छेत्र में चाहे  निजी या सार्वज़निक , व्यक्तिगत या राजनैतिक ,....  मार्मिकता और करुणा की वज़ह से उपज रहा है ; जो  उनके और उनके परिवार को हर चीज़ में सहायता करता रहा है .
एक बेटी अपने मां के गालों  की चुटकी ले रही है , मेंडक के ऊपर बहिन का मजाक हो रहा है  शायद यह अहसास जताते हुए की उनके भाई एक खूबसूरत  राजकुमार हैं , एक पूरा  परिवार जो  चुनाव अभियान के  पिकनिक भ्रमण बच्चों सहित निकला है , बच्चो की मासूम तस्वीरें दिखाई जा रही हैं , और साले साहेब के इंटरवीयू  लिए जा रहे हैं , .......जो नहीं जानना चाहते उन्हें उनसे भी  ज्यादा जानकारी दी जा रही है ... यही राहुल के राजनीति अभियान के अलंकरण और आभूषण थे ....पता नहीं , जनता को किस राजनीती की संकेत दिए जा रहे थे और क्या बताना चाहते थे ???

अखिलेश ने समाजवादी पार्टी की सोच को नयी दिशा दी .  जातिगत विचारधारा को परिवर्तित करते हुए , मानव विकास के सभी पैमानों पर पिछड़े और  देश के सबसे अधिक जनसँख्या वाले राज्य के युवको की आकान्छायों और सपनो से आपने आप को और पार्टी को जोड़ा . अखिलेश ने  9000 KMs  कम से ज्यादा   यात्रायें की .उत्तरप्रदेश की तंग धूलभरी गललियों में साइकिल की से ..राज्य की 403 विधानसभा छेत्रों में 250 छेत्रों का  स्वंय  दौरा किया .....लोगों से अपने संपर्क बढाये......बड़े धैर्य से लाठीचार्ज को भी झेला .....चापलूसी और चिकनी चुपड़ी बातों को सरलता से लिया ...मंच पर  नीचे से फेंके जाने वाले गेंदे फूल की मालायों के लिए भी अपना सर उन्होंने झुकाया . अपने पार्टी कार्यकर्तायों के नाम से बुलाते रहे और उन्हें अपने   साथ दौरों पर बस में भी बैठाते रहे .उनके भाषण संक्षेप , रोचक और ओजस्वी रहे. उन्होंने मायावती की बुराईयों को भी , कहीं कहीं हास्य का सहारा लेते हुए जिक्र किया विगत 6 महोनों में 800 से ज्यादा रैल्लियाँ की. 

जहाँ राहुल गाँधी  one man show  थे..... कांग्रेस पार्टी की अन्दूरनी  संगठन व्यवस्था कमज़ोर थी और आपसी खींचातानी और आंतरिक विरोधों का सामना करना पड़ा हमेशा केंद्रीय और राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के झुण्ड से घिरे रहे या उनके व्यूह में फंसे रहे..अखिलेश ने  राज्य की मिटटी में चल कर लोगों से अपना संबध बनाते रहे ...एक नए सोच और एक नयी दिशा की आशा की किरण लोगों में जगाते हुए ....



poonam shukla

Saturday, February 11, 2012


रैलियों और भाषणों में , जांत-पांत और धर्म के अलगाव पर खेली जाती घिनौनी राजनीती में,
चुनावी रणनीति और वादों के जाल में , मेरे विकास , शिक्षा और स्वास्थ्य की बातों को याद रखना !!!!

" वोट " का हथियार तुम्हारे हाथ है ...उनके बहते आँसुयों में न बहलो , मेरी आँखों में झांक कर देखो
शहीदों का क़र्ज़ है तुम पर , उनके और मेरे उस "भारत" के उन अधूरे सपनो को याद रखना !!!!!

poonam shukla

Railiyon aur bhashanon men , Jaant- Paant aur Dharm ke algaav par kheli jaati ghinauni Rajneeti men :
Chunavi rananeeti aur vadon ke jal men , mere vikas , shiksha aur swasthya kee baton ko yaad rakhana !!!!

" VOTE" ka hathiyaar tumahare pass hai ...unke bahate aasyuon men na bahalo , meri aankhon men jhaank kar dekho,
Shaheedon ka karz hai tum par , unke aur mere us Bharat ke un adhoore sapno ko yaad rakhana !!!!

‎"ए मेरे देश -- ए रहबरे- मुल्क


‎"ए मेरे देश -- ए रहबरे- मुल्क ,
मासूमियत सी इन मुस्कानों में , कल के सपने लिए इन आँखों में ,
एक बार झांक कर तो देखो ....जिसमें एक क्रांति की पुकार है....
सुप्त हुयी हमारी मानसिकता और ठन्डे हुए लहू को ललकार है.."
ए मेरे देश ,..

मुल्क के हर वाशिंदों में , हर दरजे में , हर आखों में निराशा देखा .
देश के सत्ताशिखर पर प्रजातंत्र के नाम पर ,हो रहा तमाशा देखा .
लुप्त होती नैतिकता , खत्म हुई मानवता ,बिकता इमानो-धर्म
हर किसी को धर्म और छेत्र के नाम पर ,हर एक के लहू का प्यासा देखा .

आज .....
मेरे देश के हर सवाल पर , यह रहबरे , मुल्क क्यों मौन सा है ?
अखबारों की काली सुर्ख़ियों में ;सहमा सिमटा यह देश कौन सा है ?

यह में क्या देखती हूँ .......
भयभीत चेहरों के बंद होठों की जुबान ,उजरीं हुई बस्तियां और जलते हुये मकान
खरोंचों से भरी देह लिए बहना की दास्तान ,क्या येही है ,मेरा वो प्यारा हिंदुस्तान .

केस की फाईलों से पटी अदालतें , न्याय क्यों इतना गूंगा बेहरा है ?
क्या मायने हैं आज़ादी के ,क्या गुलामी का जख्म इतना गहरा है ?
राजनीति की देहलीज़ पर दम तोड़ता प्रशासन ,
हर विकास , हर योजना , हर दफ्तर पर ,भ्रष्टाचार का पहरा है .

उन मासूम चेहरों को देखो जिन्होंने ने मौत को देखा है ,
जा कर पूछ रोती बहना से ,जिसने इंसानी वेश में हैवान देखा है .
क्या तेरी रगों में बहता नहीं , सुभाष , भगत, राणा और शिवाजी का खून ,
या फिर तुने कौन सा और कैसा हिंदुस्तान देखा है ?

नहीं देखी गज़नी और चंगेज़ की लूट ,तो अपने ही नेताओं द्वारा लूटता हिंदुस्तान देख
न सूनी नादिर के हमले , तो दंगों और आतंक से तड़पता हिंदुस्तान देख .
याद नहीं विभाजन की काली रातें , वोह गुलामी के काले दिन ,
तो गरीबी , भूखमरी और बेकारी से ; कराहता हिंदुस्तान देख .

यदि चाहिए वह देश ; तो हर कतरे मैं खून का उबाल चाहिए ,
गंगा कावेरी के मौजों से ; उछलता चीखता इन्कलाब चाहिए ,
हिमालय को पिघलाता , हिंद्सागर से उफानता
हर गली -कुचे मैं क्रांति का एलान चाहिए

आज़ादी मिली तो भी क्या , आज़ादी की जंग अभी भी जारी है
बाहरी ताकतों से कहीं ; ज्यादा अन्दूरनी खतरा भारी है
मंजिल अभी दूर है , रास्ता बहुत ही मुस्किल ,
उठ , अर्जुन ! उठा गांडीव ..देर न कर ..विश्राम की नहीं बारी है

बहुत हो गया ये तमाशा , अब मत फंसों
भ्रस्त और कुटील नेताओं के इन झूठे नारों में .
प्रगती के वादे थोथें हैं …...यह कुर्सियों की नौटंकी है ,
उठ ..आग लगा दो गन्दी राजनीती की इन दीवारों में

गीता के श्लोक तेरे गीत हों , कुरान तेरी जुबान हो ,
हर मुठ्ठियों में चेतना आये ,
उठे क्रांति हर बस्ती , हर गलियारों में .

"ए मेरे देश -- ए रहबरे- मुल्क ,
मासूमियत सी इन मुस्कानों में , कल के सपने लिए इन आँखों में ,
एक बार झांक कर तो देखो ....जिसमें एक क्रांति की पुकार है....
सुप्त हुयी हमारी मानसिकता और ठन्डे हुए लहू को ललकार है...."

Poonam Shukla

Let the Mashal of Kranti spreads

भ्रष्ट- तंत्र में हुई मैली सफ़ेद खादी है , पर तुम हरी खाकी वर्दियों का "गर्व" बनाये रखना !
अपराध और कुर्सियों के गठजोड़ में , निर्बलों - असहायों को ताक़त दिलाये रखना !
सत्ता के लालच में बिकते जमीरों के बाज़ार में , " संविधान" के मूल्यों को बचाए रखना !
मेहंदी लगे इन हाथों में , देश के लिए , मां दुर्गा और काली की ज्वाला को जलाये रखना !!

bhrast - Tantra men huyee maili safed khadi hai , par tum Hari Khaki vardiyon ka garv banaye rakhana !
apradh aur kursiyon ke gathjod men , nirbalon - asahayon ko taqat dilaye rakhana !
satta ke lalach men Bikate jameeron ke baazar me , sanvidhan ke mulyon ko bachaye rakhana !
mehandi lage in hathon me, Desh ke liye , maan Durga aur Kaali kee jwala ko jalaye rakhana !!

Poonam Shukla

Friday, February 3, 2012

केंद्रीय हिंदी निदेशालय , मानव संसाधन विकास मंत्रालय , भारत सरकार और हिंदी प्रचार प्रसार संस्थान जयपुर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी :"हिंदी एवं हिंदीतर भाषी राज्यों में हिंदी की दशा एवम दिशा " : मेरी दी गयी प्रस्तुति और भाषण ( 20th Jan 2012)

गणमान्य गुरुजन एवं उपस्थित आदरणीय अतिथि गण

हिंदी भाषा के दशा और दिशा पर मैंने बहुत शोध और विचार किये I विगत 64 वर्षों में देश में किये जाने वाले हिंदी के विकास योजनायों और कार्यों की भी समीक्षा की I पर एक बात जो सत्य है वह यह की संविधान में 15 साल के बाद हिंदी को देश की भाषा बनाने की व्यवस्था के बाद भी हम उसे अधिकारिक तौर पर रास्ट्रभाषा का दर्ज़ा तक नहीं दे पायें हैं I हर देश की अपनी एक भाषा होती है जिसमें पूरा देश संवाद करता है। जिसके माध्यम से एक दूसरे को पहचानने व समझने की शक्ति मिलती है । जो देश की सही मायने में आत्मा होती है । परन्तु 64 वर्ष की स्वतंत्रता उपरान्त भी हमारे देश की सही मायने में कोई एक भाषा नहीं बन पाई है । जिसमें पूरा देश संवाद करता हो । आज भी वर्षों गुलामी का प्रतीक अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व ही सभी ओर हावी है । जबकि स्वाधीनता उपरान्त सर्वसम्मति से हिन्दी को भारतीय गणराज्य की राष्ट्रभाषा के रूप में संविधान के तहत मान्यता तो दे दी गई पर सही मायने में आज तक दोहरी मानसिकता के कारण इसका राष्ट्रीय स्वरूप उजागर नहीं हो पाया है।

एनकार्टा एन्साइक्लोपीडिया में भाषा के बोलने वालो की संख्या की अनुसार चीन के मैन्डरिन के 105 करोड़ के बाद. यदि हम विश्व के और देशों में जहाँ हिंदी भाषी बसे हैं को जोड़े तो हिंदी इस विश्व में करीब 100 करोड़ लोग बोलते है I पर यह कितनी बड़े शर्म की बात है की हिंदी विश्व में दूसरे स्थान पर होते हुए , आज भी संयुक्त रास्ट्र संघ की भाषा नहीं बन पायी है I

क्या हिंदी विकास में किये जाने वाले कार्य , योजनायें और कार्यक्रम किसी परिणाम को नहीं दिखा पा रहें हैं ? ऐसा क्यों है की हिंदी सिर्फ हिंदी दिवस पर सरकारी कार्यालयों में बोर्ड पर लिखा एक शब्द बन कर रह गयी है ? 

हिंदी देश में 51 % लोग जानते हैं I 2001 की जन गणना में 40 % लोगों ने हिंदी को अपनी मातृभाषा बताई है ; तो सवाल है की हिंदी फिर मात्र एक भाषा क्यों हैं ?

हिंदी के विकास , प्रचार और प्रसार के लिए काफी कार्य , योजनायें और कार्यकर्म कार्यान्वित किये गए हैं I आवश्यकता है इन योजनायों और कार्यों को बदलते सामाजिक परिवेश का रूप देना और आधुनिक संसधानो का प्रयोग करना. यह जरूरी है की इसे जनमानस में बताया जाए की हिंदी " छायावाद " का सिर्फ शोध करने या " सन्दर्भ सहित व्याखा कीजिये" वाली भाषा नहीं है बल्कि देश के प्रगति और समाज की उन्नति की भाषा है I

एक बार इमानदारी से सोचें , की वह क्या बात है जिसने अंग्रेजी भाषा को लोकप्रिय बनाया. गुलामी की मानसिकता को यदि दूर करें तो अंग्रेजी विकास और जीवनयापन की भाषा बन कर उभरती है. यही कारण की मध्यमवर्गीय परिवार भी बच्चे के शिक्षा के लिए इंग्लिश स्कूलों का चुनाव करता है और महँगी फीस देने के लिए भी तैयार होता है ; इसमें मैं कोई बुराई नहीं समजती I

मैं हिंदी भाषी छेत्र में पली-बड़ी पर बीस साल हिंदीतर छेत्रों में रही . जिसमे ७ साल मैंने तमिलनाडु और आँध्रप्रदेश में बिताये. हिंदी किसी सामाजिक वयवस्था का नहीं , बल्कि राजनैतिक संकीर्णता का शिकार है I

हमें यदि हिंदी का दशा में क्रन्तिकारी परिवर्तन करने हैं तो उसकी दिशा को राष्ट्रीय और व्यवसायीक विकास के ओर करना होगा. मैं हिंदी को राज्यों के आंकड़ों और किसी संख्या में उसकी दशा का आंकलन नहीं करना चाहूंगी ; क्योंकि मेरे विचार से उसका कोई अर्थ नहीं है. इन आंकड़ों पर हम हिंदी को नहीं तौल सकते . मेरे विचार से हमारे सोच में बदलाव की जरूरत है . वोह क्या बात है की १०० करोड़ हिन्दीभाषी होने और कई मुल्कों में बोले जाने के बाद भी हम अपने आप को कमज़ोर महसूस कर रहे हैं. इतना बड़ा हिदी बाज़ार कोई कैसे नज़रंदाज़ कर सकता है ? 

यदि आप ये सोचते है कि हिन्दी किसी को मान-सम्मान,पद और प्रतिष्ठा नहीं दिला सकती तो अपनी आँखे बंद कर एक बार सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का और एक बार स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का चेहरा अपनी बंद आँखों से देखिए और फिर सोचिये कि इन दोनों महान कलाकारों को पूरे विश्व में जो मान-सम्मान, यश और प्रतिष्ठा मिली है क्या वो हिन्दी के कारण नहीं मिली है ??? यदि अमिताभ हिन्दी फिल्मों में अभिनय नहीं करते तो क्या वे आज उस मुकाम पर पहुँच पाते जहां वो आज है? और यदि स्वर साम्राज्ञी लताजी हिन्दी में गीत न गाती तो क्या उनके स्वर सरहदों को पार कर करोडो लोगो तक पहुँच पाते ?? शायद नहीं .

पर सवाल ये भी कि एक हर व्यक्ति को तो ये सब नहीं मिल सकता जो लताजी को और अमितजी को हिन्दी से मिला किन्तु यकीन किजीये हिन्दी में अभी भी इतना सामर्थ्य है कि वो किसी के भी सपने साकार कर सकती है.आपको शायद ये जानकर हैरानी होगी कि आज के इस दौर में हिन्दी का ज्ञान भी आपके लिए कई संभावनाओं के नए द्वार खोल रहा है I

कितनी बड़ी ताकत है हिंदी की......जहाँ हमने हिंदी को व्यवसाय और अडवांस संस्कृति के नाम पर भुलाने की कोशिश की है , आज भी हिंदी अपने संगीत , गानों और साहित्य से आज भी प्रचलित है. इतनी बड़ी संख्या को आज के कारोबार में नाकारा नहीं जा सकता ...और यदि हम चाहें तो इस ताकत के बल पर हिंदी के विकास और प्रसार में अन्तराष्ट्रीय उद्योग जगत को शामिल कर सकते हैं. इसी संख्या के बल पर टेलिकॉम जगत , कंप्यूटर की दुनिया और विज्ञापन या मिडिया जगत हिंदी अपनानें में विवश है. यह एक अलग हास्यापद विषय है.. हिंदी के बल पर पुरस्कार पाने वाले पुरस्कार समारोह के वक़्त इंग्लिश में भाषण करते हैं I

हिंदी को आर्थिक प्रगति से जुड़ते ही , हिंदीतर और हिंदी समाज इसे अपनाने के लिए विवश हो जाएगा I

मुख्य रूप से घर की मजबूती भी माँ की सम्मान में भूमिका अदा करती है ? हिंदी की दशा के लिए हिंदी राज्यों का पिछड़ापन भी काफी ज्यादा जिम्मेदार है I हिंदी छेत्रों को कब तक बीमारू कहा जाता रहेगा ? जहाँ हिंदीतर राज्य साक्षरता में 75% से 90% से ज्यादा है वहीँ हिंदी बहुल राज्य सिर्फ 60% से 70% तक ही हैं और राष्ट्रीय औसत से कम हैं I हिंदी विकास के लिए बहुत जरूरी है हिंदी भाषी राज्यों का विकास I एक बात सोचने वाली है की क्या 100 करोड़ हिंदी ग्राहकों के लिए उद्योग जगत हिंदी कॉल सेण्टर नहीं खोलना चाहेगा ? यदि ऐसा होता है तो आप इंग्लिश स्पीकिंग कोचिंग के बोर्डों की जगह हिंदी सीखिए बोर्ड सडकों पर देखना शुरू करेंगे I पर यदि आप बिजली समस्या देखें तो जहाँ अहिन्दी राज्यों में उपलब्धता 70% से 90% से भे ज्यादा है , हिंदी राज्य मात्र 50% से 20% से भी नीचे हैं I जबकि जनसँख्या वृद्धि में हिन्दीभाषी राज्य हिंदीतर राज्यों से ज्यादा है. आप यह सोच रहे होंगे की राज्यों की विकास दर का भाषा की दशा से क्या लेना देना . पर यह समाया आ गया हैं की हम इस जान लें की हिंदी जनमघुट्टी की तरह नहीं पिलाई जा सकती और ना ही इस हम लाद सकते हैं I

हमें अंग्रेजी के समान्तर हिंदी भाषा का विकास करते हुए इसे उद्योग जगत की जरूरत बनानी होगी I कब तक हिंदी के लिए हम सरकरी फंड का मुंह जोहते रहेंगे . हमने हिंदी की ताक़त जान लेनी चाहिए. हिंदी किसी का मोहताज नहीं है और इसे बनाना भी नहीं है I क्या आप जानते हैं विश्व में सबसे ज्यादा बिकनेवाले शीर्ष 50 समाचारपत्रों में 4 समाचारपत्र हिंदी के हैं और भरते में शीर्ष 10 समाचारपत्रों में 3 हिन्दीभाषी समाचारपत्र हैं I

विश्व में कहीं भी हिन्दीभाषी लोग किसी भी परिवेश में हों और शायद हिंदी और संस्कृति से कोसों दूर हो , पर आज भी मेहंदी और संगीत में हिंदी संगीत ही बजता है और अन्ताक्षरी खेल में उनके होंठ हिंदी गाने ही गाते हैं I 

अन्तराष्ट्रीय उद्योग ने भी हिंदी की शक्ति को स्वीकार कर लिया है I गूगल , माईक्रोसोफ्ट , नोकिया , सैमसंग जैसे कंपनी हिंदी भाषा का उपयोग कर रही है I जहाँ 70% हिंदी जनता ग्रामीण इलाकों में रहती है वहां हिंदी का उपयोग इन कंपनियों के लिए विवशता है I हिंदी भाषी प्रदेशों के पिछड़ेपन की चाहे जितनी बात की जाएँ पर एक सत्य यह भी की देश का 32% मोबाइल उपभोक्ता यानि 20 करोड़ इन प्रदेशों में है I

यदि हर हिन्दी भाषी व्यक्ति हिन्दी के साथ किसी एक अन्य भारतीय भाषा को स्वीकार ले, उसे सीखने की कोशिश करे तो पूरे भारत के लोग दिल से हिन्दी को अपना लेंगे इसके लिए किसी बड़े आंदोलन की ज़रूरत नहीं होगी, पर ये पहल हिन्दी भाषी समाज को करनी होगी.1991 की जनगणना के अनुसार हिंदी भाषियों में दूसरी भाषा जानने वाले लोग सिर्फ 8 % और तीन भाषा मात्र 3% है जबकि अन्य भाष्यों में दूसरी भाषा और तीसरी भाषा की जानकारी रखने वालों का का अनुपात लगभग 10% से ज्यादा है I

1965 में भाषाई आधार पर राज्यों के गठन से ही हिंदी को हिंदी बहुल छेत्रों की छेत्रीय भाषा का दर्ज़ा मिल गया है और हिंदीतर राज्यों में हिंदी अपन्नाने पर विरोध होने लगे I हिंदी का विरोध राष्ट्र भाषा का विरोध नहीं बल्कि उत्तरभारत के राज्यों का विरोध मन जाने लगा I देश में उभरती छेत्रीय राजनैतिक पार्टियों ने हिंदी विरोध को मानो उत्तरप्रदेश और बिहार का ही विरोध मन लिया है I जहाँ गुजरात उच्च न्यायालय ने इसे गुजरात के लिए विदेशी भाषा बताया है वहीँ देश के कई हिंदीतर राज्यों में हिंदी छेत्रीयता के नाम पर संकीर्ण और छेत्रीय राजनीती का शिकार होने लगी है I यदि हम कुछ पल , राजनीति को दरकिनार कर दें तो संन्स्कृति और सभ्यता की साथ अहिन्दीभाषी जन समाज हिंदी को अपनाते हैं और सीखते हैं I भारत सरकार और हिंदी निदेशालयों के आंकड़ों का अध्ययन करा रही थी तो यह जान कर ख़ुशी हुयी की हिंदीतर राज्यों में हिंदी सीखने वालों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है I मैं स्वयं हिंदीतर राज्यों- दक्षिण राज्यों में रही हूँ और मैंने लोगों में हिंदी का सम्मान देखा है . कोशिश अब यह होनी चाहिए की हिंदी किसी संकीर्ण छेत्रीय राजनीति का शिकार न हो जाए I

बदलते सामाजिक परिवेश , उभरती छेत्रीय राजनैतिक ताकतें , जीवयापन के लिए लोगों का आवागमन और आधुनिक प्रसार और प्रचार की तकिनीकी को देखते हुए हिंदी के विकास के लिए नए सिरे से और नए तौर तरीकों से योजनायें बनाने की जरूरत है I शिष्यवृत्ति , अनुदानों और कानूनी प्रावधान भर पहना देने से अब हिंदी की दशा में सुधार नहीं होगा I

हिंदी की ताक़त को बढ़ते उपभोक्तावाद संस्कृति से जोड़ने की सख्त जरूरत है I व्यवसायीकरण के युग में हिंदी के उपयोग की महत्ता ही हिंदी की दशा निर्धारण करेगी और यही हिंदी के दशा में सुधार लाने की सटीक दवा साबित होगी I " इंग्लिश स्पीकिंग " बोर्डों की जगह " हिंदी सीखिए " जब दिखाई देने लगे , समझ लीजिये हिदी की शक्ति का सही उपयोग करने में हम सफल रहे हैं I 

जय हिंद

poonam shukla

Sunday, January 15, 2012

देश में ही नहीं विश्व भर में कुपोषण एक मानवीय शर्म है -
देश में ही नहीं विश्व भर में कुपोषण एक मानवीय शर्म है -
Its not only for India , its for world , malnutrition is humanitarian shame when we have more than 16000 cr $ only military expenditure per Year. 

विश्व का रक्षा बजट 16000 करोड़ $ हो गया है ( 2010) . विश्व के हर व्यक्ति पर $ 236 का रक्षा खर्च हो रहा है . यह GDP का 2.6% है. संयुक्त राष्ट्र संघ का बजट मात्र १इस रक्षा बजट का 1.6 % है. एक चौंका देने वाली बात पर एक कटु सत्य यह भी है की विश्व की आर्थिक निर्भरता और उद्योग - 4.4 % हिंसा और युद्ध पर आधरित हैं और फलफूल रहे हैं . शांति की नाम पर हो रहे पाखण्ड एक और सचः.. संयुक्त राष्ट्र संघ के शीर्ष 5 देश ही हथियार बाज़ार के मुख्या निर्माता और सप्लायर हैं. विश्व के विकासशील देश रोटी और बिजली की बुनियादी सुविधायों की बजाय हथियारों की अंधे होड़ में शामिल हैं . विगत 10 वर्षों में नुक्लीयर हथियारों पर 100000 करोड़ $ खर्च हुए हैं.

भारत का Rs 1,64,416 crore - विश्व में 10 स्थान और 1.83 % GDP रक्षा व्यय है तो पाकिस्तान का 2 .6% विश्व में 35 स्थान GDP सिर्फ सेना पर है .

भारत में हर रोज़ लगभग सवा आठ करोड़ लोग भूखे सोते हैं .लगभग 20 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार हैं.

विश्व में 300करोड़ लोगों से भी अधिक केवल 2.5 $ पर्तिदिन पर जीवन निर्वाह करते हैं और गरीबी मापदंडो से नीचे हैं . ऊनिसेफ़ के अनुसार 22000 बच्चे प्रति दिन भूख और गरीबी से मरते हैं . विश्व के 260 करोड़ लोगों से भी ज्यादा लोग बुनियादी सुविधायों से वंचित हैं. विश्व के 160 करोड़ लोग आज भी अन्धकार में है बिना किसी बिजली के.

मैं पूछती हूँ विश्व के शासकों :

मेरे तन से वस्त्र खींच कर सेना तुम क्यूँ जुटा रहे हो .
मेरे मुंह का कौर छीन कर हथियार क्यूँ बना रहे हो
व्यापार के नाम पर अहिंसा की छाती पर छूरा भोंक
मानवता का ढोंग किये शांति शांति क्यूँ चिल्ला रहे हो