Sunday, May 29, 2011

वह रास्ता मेरे गाँव को जाता है


वह रास्ता मेरे गाँव को जाता है

बिखरे खेतों मैं पीली सरोसों और गन्नों की हरियाली 
बैलों की घंटियों में गूंजती सुबह शाम की लाली
पायल झंखाती गोरियां और अमराई में बूढों का जमघट
बच्चों के पीछे भागती अम्मा -चाचियों की प्यार भरी गाली 

रास्ते पर छपता हर चिह्न किसी के "आने" का संकेत दे जाता है
वह रास्ता मेरे गाँव को जाता है. वह रास्ता मेरे गाँव को जाता है

पर अब बिखरे खेतों में मेड़ें हैं , न वोह मिटटी की सोंधी गंध है 
सूनी अमराई , खामोश हवाएं , घरों में न अब बच्चों की हुर्दंग है 
न गोबरों की उपरी लगाती अम्मा है न रामायण बांचते चाचा ,
रिश्तों के चादर में अब जैसे हर किसी में आपस में कोई जंग है .

रास्ते पर हर पदचिह्न किसी के " जाने " का संकेत दे जाता है 
वह रास्ता मेरे गाँव को जाता है. वह रास्ता मेरे गाँव को जाता है

कोने में बेसुरे रेडियो के बीच गुमटी में चाय पीता मैं रास्ते को देखता गया 
धुल से भरे जीपों में किसी तरह लदे ठुंसे थके चेहरों को नापता गया 
कोई बता रहा था मुझे , एक दिन एहां कुछ हादसा हो गया था
हर ओर शोर मचा था ,शहर आ गया शहर आ गया शहर आ गया

यह रास्ता तब से पड़ा वहीँ , लूटा हुआ सा उदास आंसूं बहाता है
वह रास्ता मेरे गाँव को जाता है. वह रास्ता मेरे गाँव को जाता है

2 comments:

  1. बहुत खूब पूनम बहन ...
    बहुत ही करीने से शहर गाँव का चित्रण ॥
    मेरे भी ब्लॉग पर आयें

    ReplyDelete
  2. Very lovely post poonamji,,, keep continue ...

    ReplyDelete

आपके कमेन्ट और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद