Saturday, February 5, 2011

काला धन....छमा किजीये मेरी सोच अलग है


सुजला सुफला कहे जाने वाले भारत को कभी सोने की चिडिया कहा जाता था . आज देश में  456 million ( 41.6%) विश्व गरीबी रेखा ( 1.25 $ प्रतिदिन ) के नीचे हैं वहीँ अंदाजन  $1500 million से ज्यादा काला धन बाहरी देशों में छिपा हुआ है. यह भी कितनी अजीब बात है जिस देश का इतना धन छिपा हुआ है वह  देश  $273.1 billion के  विदेशी क़र्ज़ तले दबा हुआ है. 

अर्थशास्त्री  , North Block , South Block  के आला विशेषज्ञ  काले धन पर शोध और बहस कर सकते है  पर मैं कई बार इस बात पर हैरान होती हूँ की  काले धन को हमेशा पूंजीवाद से जोड़कर उद्योगपतियों और व्यापारियों को ही क्यों निशाना बनाया जाता है ? 

क्या है यह काला धन ? क्या यह भ्रस्टाचार की उपज है या फिर सरकारी नीतियों का गलत परिणाम ? हम जानते है..महसूस करते हैं..पर करते नहीं क्योंकि कहीं न कहीं हमें इसे अपनी जिंदगी का हिस्सा मान लिया है. 

पुराने ज़माने में लोग धन को जमीनों के नीचे गाढ़ कर रखते थे . इसकी कितनी मिसालें हैं जेहन यह सारे खजाने उनके गुजर जाने के बाद  रहस्यों और गुमनामी में खो गए और इस तरह के धन जमीनों में दफ़न पड़े रह कए जो एकाध बार मिल जाते है ....पर कोई नहीं जानता कितना और कहाँ ?  यह मानसिकता आयी कहां से ? क्यों इसे जमीनों में लोग गाढ़ देते थे .  युद्ध में व्यस्त राजा द्वारा छीन लिए जाने , लगान के रूप में वसूल लिए जाने और अव्यवस्था के दौरान लूट लिए जाने का खतरा ही इसका मुख्य कारण हमेशा रहा है ? 

राजा तो नहीं रहें और अब प्रजातंत्र के नाम पर हमारी चुनी सरकार होती है..पर क्या डर भी चला गया ? क्या डर अभी कायम है ? चुनाव के वक़्त पैसे का बटोरना , बड़ते सरकारी  खर्चों के लिए  टैक्स में बढोत्तरी , लुभावनी सरकारी वायदों को पूरा करने के लिए वसूली  पर जोर ...हर फाईलों और हर नियमों पर भ्रस्टाचार का सामना ...क्या आज भी वह डर कायम नहीं है ? 

सिर्फ मानसिकता जमीन पर छिपा कर  रखने  की बजाय सरल, इमानदार और कम टैक्स वाले देशों में जमा करने की हो गयी है....

तो दोष कहां है....हम क्यों दोष दे रहें उन लोगों को अपने लगन , साहस और प्रतिभा से अपने उद्योग धंधो को चलाता है...कई लोगों को रोजगार प्रदान करता है....देश के आर्थिक विकास में योगदान देता है...( जिसका श्रेय अपने पार्टियों की दांवपेंच में व्यस्त उलझे नेता लेते रहते हैं ) ...जो पूरा खतरा उठा कर दांव लगा कर  कुछ करने के लिए उद्योग धंधों में लगता है.....क्या सहूलियत हम उसे दे पाते हैं....क्या सहज और सुलभ वातावरण सरकार उसे देती है की वह अपने  कमाए पैसे को पुनः देश और स्वयं के उद्योग धंधे के विकास में लगाये ....क्या सुरक्षा उसे दिया जाता  है की वह निर्भीक हो कर हवाला और गलत तरीकों से पैसे को छिपाने की न सोचे. 

पर हमारे नीतियों में वेतन भोगियों और उधमियों के लिए तो हर अंकुश है . जटिल टैक्स और स्वयं पर कठिन जिम्मेदारियां हैं की उसकी गाढ़ी कमाई का कम से कम ३०%  पैसे देश के विकास के लिए जरूरी है.....पर इन नीतियों को बनाने वाले सरकारी खर्चों में कितना कमी ला पाए हैं.....क्या चुनाव के वक़्त वे अपने  गाढ़ी कमाई का धन लगाने लगे हैं...क्या विकास और योजनायों का हर पैसा जनता तक पहुँचने लगा है....क्या हमने अपनी नीतियों को सरल और उदार बनाया है ताकि लोग देश में बिना किसी डर के निवेश कर सकें...क्या हमारी हर सरकारी खरीद और ठेकों  में पारदर्शिता आयी है....क्या हमने देश के ग्रामीण विकास और रोजगार के अवसरों  पर ध्यान दिया है जहाँ के लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं .... क्या हमने सार्वजानिक वितरण प्रणाली को मजबूत किया है ताकि खेतों से निकली उपज उपभोक्ता तक प्रदान हो और वाजिब कीमत किसानो  और उपभोक्तायों को मिले. 

हर दिन मेहनत कर रहे नागरिक जो हर महीने तन्खवाह की बाट जोहते रहते है..उससे हम 30 % इस लिए ले लेते है की उसका पैसा देश के विकास के लिए जरूरी है , भले उसे  स्कूल के एडमिशन के लिए या घर के लिए काला धन के सामना करें पड़े. पर क्या  हमारे नेता चुनाव में अपनी गाढ़ी कमी का पैसा लगाते हैं......क्या हर योजना का हर पैसा जनता तक पहुँच जाता है...नशे और हथियारों के व्यापर पर कितना अंकुश लगा पाए हैं.....सरकारी तंत्र को किसी असफलता के लिए क्या कभी  सजा मिली है ...क्या माफिया और अपराधियों को संसद या विधानसभा में भेजने ..छमा किजिएयेगा...जेल भेजने में सफलताएँ मिली हैं.   

हर उद्यमी से टैक्स लेते हैं की वह अच्छी तरह कमाई कर रहा है भले उसके  दिवालियापन की नौबत आये ....पर सोचिये की उद्यमी तो पैसे कहीं भी छिपाए ..कहीं न कहें आपने उद्योग धंदे में किसी न किसी तरह तो लगा ही देगा ..पर ...सिर्फ हस्ताछर और नीतियां बनाने के लिए इमान का सौदा कर आ रहे काले धन को कैसे रोकेंगे....

माना की देश के बाहर छिपे काले धन को लाने में जटिल कानूनी अडचने है जो हम हल करते रहेंगे ..पर क्या बाकी समस्याओं के लिए भी स्विस बैंक की मदद चाहिए या किसी बाहरी मुल्क के कानून की इजाजत लेनी है....

मुद्दा काले धन के लाने से कहीं ज्यादा काले धन की जनम देनेवाली कारणों के सफाए की भी है  ...संसद में क्या इस पर चर्चा हो रही है...या काफिहौउस में हम और आप इस पर गंभीरता से बात कर रहें है...या फिर  north ,south , east , west... कोई भी दिशा का ब्लाक हो पर इस पर इमानदारी से कार्य हो रहा है .

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