Sunday, November 27, 2011

ज्योतिष , कर्म और पुरुषार्थ


ज्योतिष , कर्म और पुरुषार्थ

धन वैभव प्राप्ति के लिए मनुष्य अत्यंत प्रयत्नशील रहता है. आप पत्रिकायों और  टीवी चैनलों को देख लें तो हजारों तरीकों से ज्योतिष और धर्म शास्त्र का सहारा लेकर कई तरह के विधि-विधान और अनुष्ठान बताएं जा रहे हैं . कई तरह के मंत्र - यन्त्र से वैभव और धन प्राप्ति के अचूक उपाय दिए जा रहे हैं. 

 हर विधि विधान और मंत्र-यन्त्र की अपना महत्व और  लाभ है . सही , उचित और शास्त्रोक्त रीतियों के अनुसार किये जाने वाले अनुष्ठानो का महत्व है और मनुष्य लाभान्वित भी होता है . हमारे प्राचीन शास्त्रों ने इसका विधिवत उल्लेख किया है. पर यह बात बहुत आवश्यक है की जिस तरह इसे आज समाज में प्रस्तुत  किया जा रहा है क्या वह उचित और सही है और क्या हम सर्व प्रकार से प्राचीन ज्ञान को समाज में प्रस्तुत कर रहे हैं. हमारी संस्कृति , सभ्यता और  सनातन धर्म कर्म प्रधान रहा है .  ज्योतिष और वेदों में उल्लेखित उपाय या  अनुष्ठान  कोई इन्स्टंट नूडल बनाने के नुस्खे नहीं थे. 

धन , वैभव और ऐश्वर्य प्राप्ति  की हर कोई साधना करना चाहता है.  दीपावली  के इस पवित्र पर्व पर आवश्यक है हम धर्म , ज्योतिष और प्राचीन ज्ञान के सहारे सही तरीके समझे , जाने और उपयोग में लाये ताकि जीवन को सफल बनाया जा सके .

!! कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती  . करमूले तु गोविन्द: प्रभाते करदर्शनम् !!  हमारे हाथों में ही मां लक्ष्मी , मां सरस्वती और भगवान गोविन्द का निवास है .


यथार्थ में ज्योतिष का मूल रूप कर्म विधान पर आधारित है. कर्म-पूर्व जन्म का,कर्म-वर्तमान जीवन का एवं इसके आधार पर विश्लेषण की प्रक्रिया.साथ ही देश,काल एवं पात्र का सिद्धांत भी लागु होता है.ज्योतिष विज्ञानं हमारे कर्मो का ढांचा बताता है . यह हमारे भूत वर्तमान और भविष्य में एक कड़ी बनता है. कर्म चार प्रकार के होते है:

१- संचित : संचित कर्म समस्त पूर्व जनम के कर्मो का संगृहीत रूप है
२- प्रारब्ध : प्रारब्ध कर्म , संचित कर्म का वह भाग होता है जिसका हम भोग वर्तमान जनम में करने वाले है . इसी को भाग्य भी कहते है.
३- क्रियमाण : क्रियमाण कर्म वह कर्म है जो हम वर्तमान में करते है . क्रियमाण कर्म इश्वर प्रदत्त वह संकल्प शक्ति है, जो हमारे कई पूर्व जन्म के कर्मो के दुष्प्रभावों को समाप्त करने में सहायता करती है. उ
४- आगम : आगम कर्म वह नए कर्म है जो की हम भविष्य में करने वाले हैं.

कर्म  करना एक तरह से मानव जीवन की विवशता ही है, क्यों कि किए गए कर्मों से ही प्रारब्ध का निर्माण होता है. भाग्य पूर्व के संचित कर्मों तथा वर्तमान जीवन के किए गए कर्मों के मिश्रण का ही रहस्यमयी अंश है. इसलिए अधिकतर लोग अपने-अपने क्षेत्रों में सफलता के चरम को छूने के लिए निरन्तर संघर्षशील रहते हैं, लेकिन इनमें से बहुत कम ही अपने सपनों को हकीकत में बदल पाते हैं. ऎसी मान्यता है कि प्रकृ्ति केवल योग्य "प्रारब्ध" का ही स्वागत करती है. यहाँ योग्य शब्द विज्ञान के किसी भी तर्क तथा मानव बुद्धि की सीमा से बाहर है. "योग्यता" के बीज कर्मफल में ही छिपे रहते हैं और इन बीजों में लुप्त रहते हैं मानव के पूर्व जन्मों के वे श्राप अथवा वरदान, जिन्हे अपनी चेतना में समेटे आत्मा इस शरीर में जन्म लेती है.

गीता में लिखा है : 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।  मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।

कर्तव्य-कर्म करनेमें ही तेरा अधिकार है, फलोंमें कभी नहीं। अतः तू कर्मफलका हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यतामें भी आसक्ति न हो ।इसका तात्पर्य है की मन की आप कर्म करते वक़्त परिणामों की चिंता न करें पर आलस्यपन और  अकर्मण्यता के शिकार न हो 

तुलसी यह तनु खेत है, मन बच कर्म किसान |
पाप पुण्य द्दै बीज हैं, बबै सो लवै निदान ||

तुलसीदास मनुष्य शरीर की तुलना खेती की जमीन से करते हैं . बुध्धि , वचन और कर्म किसान की भूमिका है  जहां अच्छे और बुरे कर्मों का पाप और पुण्य की तरह बीज बोने पर उसी तरह से फसल की प्राप्ति होती है .

नए भविष्य निर्माण के लिए सबसे पहला कदम है अपनी कमियों को समझ कर उन्हें दूर करने का प्रयास करना. हम जो भी करें, उसके लिए हमें शांत, संयमित होना चाहिए. साथ ही अपने कर्मों का सजग रह कर विश्लेषण भी करना चाहिए. अगर हम कमियों को हमेशा सही ही साबित करेंगे तो हम कभी भी अपने जीवन में उन्नति नहीं कर पायेंगे और न ही भविष्य को संवार पायेंगे. हमारे पूर्व जन्म के बुरे कर्मों ने ही वर्तमान की विषम परिस्थितियों को पैदा किया होता है और हमारे अन्दर नकारात्मक कर्मों के लिए प्रवृत्ति भी पैदा की होती है. यदि हम उस प्रवृत्ति में बहते जायेंगे तो भविष्य और बिगड़ता ही जाएगा. अतः सबसे महत्त्वपूर्ण कदम है अपनी कमियों को समझना. 

न योगेन न सांख्येन कर्मणा नो न विद्यया.
ब्रह्मात्मकबोधेन मोक्षः सिद्धयति नान्यथा..

ग़ीता का सिद्धान्त अति संक्षेपसे यह है कि मनुष्यको निष्काम भावसे स्वकर्ममें प्रवृत्त रहकर चित्तशुद्धि करनी चाहिये। चित्तशुद्धिका उपाय ही फलाकंक्षाको छोड़कर कर्म करना है। जबतक चित्तशुद्धि न होगी, जिज्ञासा उत्पन्न नहीं हो सकती, बिना जिज्ञासा के मोक्षकी इच्छा ही असम्भव है।

आदित्यचन्द्रावनिलोऽनलश्र्चद्यौर्भूमिरापो हॄदयं यमश्र्च  
अहश्र्च रात्रिश्र्च उभे च संध्ये धर्माेऽपि जानाति नरस्य वॄत्तम् ! महाभारत !

सूर्य , चन्द्र , वायु , अग्नि , आकाश , पृथ्वी , जल , हृदय , यम , सूर्योदय और सूर्यास्त और धर्म हमेशा   हमारे कार्यों को देखते रहते है और उसके साक्ष्य है 

षड् दोषा: पुरूषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता 
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध: आलस्यं दीर्घसूत्रता ! पंचतंत्र !

जो विश्व में समृधि पाना चाहते है , उन्हें छः दोषों से दूर रहना चाहिए : लम्बी निद्रा या अज्ञान- हमारे इर्द गिर्द क्या हो रहा है इसकी जानकारी न होना  , तन्द्रा ,भय , क्रोध , आलस्य और कंजूसी  . 

ज्योतिष  समय का विज्ञानं है . तिथि , वार, नक्षत्र , योग और कर्म इन पांच चीजों का अध्ययन कर भविष्य में होने वाली घटनायों का आकलन किया जाता है . संभावनायों  और भविष्यवाणी के बजाय ज्योतिष शास्त्र का सही उपयोग  परामर्श , मानव जीवन को अनुशासित  और जिंदगी के हर पल का एक समुचित मार्गदर्शन के साधन के तौर पर समाज में प्रस्तुत करने की अंत्यत आवश्यकता है . केवल भविष्यवाणियों में सिमित न रह कर , ज्योतिष का आधार लेकर मनुष्य की जीवन की कई समस्यायों का हल निकाला जा सकता है. ज्योतिष भविष्य को बदलता नहीं बल्कि मनुष्य को सही और उचित सलाह देता है .  प्रथम तो हमें यह समझ लेना चाहिए की ज्योतिष है क्या ? ज्योतिष प्रकाश का नाम है | प्रकाश अँधेरे को दूर करता है अँधेरा लाता नहीं | ज्योतिष कर्म को निश्चित करता है कर्म से भटकाता नहीं | ज्योतिष व्यर्थ के प्रयासों से बचते हुए सफलता के लिए मदद करता है व्यर्थ के कार्य नहीं करवाता है | वस्तुतः ज्योतिष हमें हमारे अन्तर्निहित शक्ति का ज्ञान करवाते हुए सही दिशा प्रदान करता है | 


दीपावली का पर्व हमें वैभव और यश की कामना का संकेत देता है. हम अर्थ प्राप्ति की इच्छा रखते हुए उपासना करते हैं मां महालक्ष्मी की. इस अवसर पर विधि विधान से मां महालक्ष्मी की स्तुति करते हुए ध्यान रखिये की मां लक्ष्मी की उत्पति भी एक संघर्ष से हुयी थी. मां लक्ष्मी की प्राप्ति समुद्र मंथन से हुयी थी.  दीपवाली का उत्सव हम भगवान् श्री राम और  मां सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या आने की ख़ुशी में मनाते हैं . रामायण की कथा भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पुरुषार्थ का उल्लेख करती है.  आज  दीपवाली में धन  , वैभव और समृधि की कामना करते हुए मां महालक्ष्मी की  विधिवत पूजन कर  नित अच्छे और कल्याणकारी कर्म करने का संकल्प करें. सफलता आपके कदम चूमेंगी .

पूनम शुक्ला  
http://astropoonamshukla.blogspot.com/p/blog-page.html

1 comment:

  1. ज्योतिष और कर्म एक दूसरे के प्रतिलोमी प्रतीत नहीं होते?

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