Friday, February 3, 2012

केंद्रीय हिंदी निदेशालय , मानव संसाधन विकास मंत्रालय , भारत सरकार और हिंदी प्रचार प्रसार संस्थान जयपुर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी :"हिंदी एवं हिंदीतर भाषी राज्यों में हिंदी की दशा एवम दिशा " : मेरी दी गयी प्रस्तुति और भाषण ( 20th Jan 2012)

गणमान्य गुरुजन एवं उपस्थित आदरणीय अतिथि गण

हिंदी भाषा के दशा और दिशा पर मैंने बहुत शोध और विचार किये I विगत 64 वर्षों में देश में किये जाने वाले हिंदी के विकास योजनायों और कार्यों की भी समीक्षा की I पर एक बात जो सत्य है वह यह की संविधान में 15 साल के बाद हिंदी को देश की भाषा बनाने की व्यवस्था के बाद भी हम उसे अधिकारिक तौर पर रास्ट्रभाषा का दर्ज़ा तक नहीं दे पायें हैं I हर देश की अपनी एक भाषा होती है जिसमें पूरा देश संवाद करता है। जिसके माध्यम से एक दूसरे को पहचानने व समझने की शक्ति मिलती है । जो देश की सही मायने में आत्मा होती है । परन्तु 64 वर्ष की स्वतंत्रता उपरान्त भी हमारे देश की सही मायने में कोई एक भाषा नहीं बन पाई है । जिसमें पूरा देश संवाद करता हो । आज भी वर्षों गुलामी का प्रतीक अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व ही सभी ओर हावी है । जबकि स्वाधीनता उपरान्त सर्वसम्मति से हिन्दी को भारतीय गणराज्य की राष्ट्रभाषा के रूप में संविधान के तहत मान्यता तो दे दी गई पर सही मायने में आज तक दोहरी मानसिकता के कारण इसका राष्ट्रीय स्वरूप उजागर नहीं हो पाया है।

एनकार्टा एन्साइक्लोपीडिया में भाषा के बोलने वालो की संख्या की अनुसार चीन के मैन्डरिन के 105 करोड़ के बाद. यदि हम विश्व के और देशों में जहाँ हिंदी भाषी बसे हैं को जोड़े तो हिंदी इस विश्व में करीब 100 करोड़ लोग बोलते है I पर यह कितनी बड़े शर्म की बात है की हिंदी विश्व में दूसरे स्थान पर होते हुए , आज भी संयुक्त रास्ट्र संघ की भाषा नहीं बन पायी है I

क्या हिंदी विकास में किये जाने वाले कार्य , योजनायें और कार्यक्रम किसी परिणाम को नहीं दिखा पा रहें हैं ? ऐसा क्यों है की हिंदी सिर्फ हिंदी दिवस पर सरकारी कार्यालयों में बोर्ड पर लिखा एक शब्द बन कर रह गयी है ? 

हिंदी देश में 51 % लोग जानते हैं I 2001 की जन गणना में 40 % लोगों ने हिंदी को अपनी मातृभाषा बताई है ; तो सवाल है की हिंदी फिर मात्र एक भाषा क्यों हैं ?

हिंदी के विकास , प्रचार और प्रसार के लिए काफी कार्य , योजनायें और कार्यकर्म कार्यान्वित किये गए हैं I आवश्यकता है इन योजनायों और कार्यों को बदलते सामाजिक परिवेश का रूप देना और आधुनिक संसधानो का प्रयोग करना. यह जरूरी है की इसे जनमानस में बताया जाए की हिंदी " छायावाद " का सिर्फ शोध करने या " सन्दर्भ सहित व्याखा कीजिये" वाली भाषा नहीं है बल्कि देश के प्रगति और समाज की उन्नति की भाषा है I

एक बार इमानदारी से सोचें , की वह क्या बात है जिसने अंग्रेजी भाषा को लोकप्रिय बनाया. गुलामी की मानसिकता को यदि दूर करें तो अंग्रेजी विकास और जीवनयापन की भाषा बन कर उभरती है. यही कारण की मध्यमवर्गीय परिवार भी बच्चे के शिक्षा के लिए इंग्लिश स्कूलों का चुनाव करता है और महँगी फीस देने के लिए भी तैयार होता है ; इसमें मैं कोई बुराई नहीं समजती I

मैं हिंदी भाषी छेत्र में पली-बड़ी पर बीस साल हिंदीतर छेत्रों में रही . जिसमे ७ साल मैंने तमिलनाडु और आँध्रप्रदेश में बिताये. हिंदी किसी सामाजिक वयवस्था का नहीं , बल्कि राजनैतिक संकीर्णता का शिकार है I

हमें यदि हिंदी का दशा में क्रन्तिकारी परिवर्तन करने हैं तो उसकी दिशा को राष्ट्रीय और व्यवसायीक विकास के ओर करना होगा. मैं हिंदी को राज्यों के आंकड़ों और किसी संख्या में उसकी दशा का आंकलन नहीं करना चाहूंगी ; क्योंकि मेरे विचार से उसका कोई अर्थ नहीं है. इन आंकड़ों पर हम हिंदी को नहीं तौल सकते . मेरे विचार से हमारे सोच में बदलाव की जरूरत है . वोह क्या बात है की १०० करोड़ हिन्दीभाषी होने और कई मुल्कों में बोले जाने के बाद भी हम अपने आप को कमज़ोर महसूस कर रहे हैं. इतना बड़ा हिदी बाज़ार कोई कैसे नज़रंदाज़ कर सकता है ? 

यदि आप ये सोचते है कि हिन्दी किसी को मान-सम्मान,पद और प्रतिष्ठा नहीं दिला सकती तो अपनी आँखे बंद कर एक बार सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का और एक बार स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का चेहरा अपनी बंद आँखों से देखिए और फिर सोचिये कि इन दोनों महान कलाकारों को पूरे विश्व में जो मान-सम्मान, यश और प्रतिष्ठा मिली है क्या वो हिन्दी के कारण नहीं मिली है ??? यदि अमिताभ हिन्दी फिल्मों में अभिनय नहीं करते तो क्या वे आज उस मुकाम पर पहुँच पाते जहां वो आज है? और यदि स्वर साम्राज्ञी लताजी हिन्दी में गीत न गाती तो क्या उनके स्वर सरहदों को पार कर करोडो लोगो तक पहुँच पाते ?? शायद नहीं .

पर सवाल ये भी कि एक हर व्यक्ति को तो ये सब नहीं मिल सकता जो लताजी को और अमितजी को हिन्दी से मिला किन्तु यकीन किजीये हिन्दी में अभी भी इतना सामर्थ्य है कि वो किसी के भी सपने साकार कर सकती है.आपको शायद ये जानकर हैरानी होगी कि आज के इस दौर में हिन्दी का ज्ञान भी आपके लिए कई संभावनाओं के नए द्वार खोल रहा है I

कितनी बड़ी ताकत है हिंदी की......जहाँ हमने हिंदी को व्यवसाय और अडवांस संस्कृति के नाम पर भुलाने की कोशिश की है , आज भी हिंदी अपने संगीत , गानों और साहित्य से आज भी प्रचलित है. इतनी बड़ी संख्या को आज के कारोबार में नाकारा नहीं जा सकता ...और यदि हम चाहें तो इस ताकत के बल पर हिंदी के विकास और प्रसार में अन्तराष्ट्रीय उद्योग जगत को शामिल कर सकते हैं. इसी संख्या के बल पर टेलिकॉम जगत , कंप्यूटर की दुनिया और विज्ञापन या मिडिया जगत हिंदी अपनानें में विवश है. यह एक अलग हास्यापद विषय है.. हिंदी के बल पर पुरस्कार पाने वाले पुरस्कार समारोह के वक़्त इंग्लिश में भाषण करते हैं I

हिंदी को आर्थिक प्रगति से जुड़ते ही , हिंदीतर और हिंदी समाज इसे अपनाने के लिए विवश हो जाएगा I

मुख्य रूप से घर की मजबूती भी माँ की सम्मान में भूमिका अदा करती है ? हिंदी की दशा के लिए हिंदी राज्यों का पिछड़ापन भी काफी ज्यादा जिम्मेदार है I हिंदी छेत्रों को कब तक बीमारू कहा जाता रहेगा ? जहाँ हिंदीतर राज्य साक्षरता में 75% से 90% से ज्यादा है वहीँ हिंदी बहुल राज्य सिर्फ 60% से 70% तक ही हैं और राष्ट्रीय औसत से कम हैं I हिंदी विकास के लिए बहुत जरूरी है हिंदी भाषी राज्यों का विकास I एक बात सोचने वाली है की क्या 100 करोड़ हिंदी ग्राहकों के लिए उद्योग जगत हिंदी कॉल सेण्टर नहीं खोलना चाहेगा ? यदि ऐसा होता है तो आप इंग्लिश स्पीकिंग कोचिंग के बोर्डों की जगह हिंदी सीखिए बोर्ड सडकों पर देखना शुरू करेंगे I पर यदि आप बिजली समस्या देखें तो जहाँ अहिन्दी राज्यों में उपलब्धता 70% से 90% से भे ज्यादा है , हिंदी राज्य मात्र 50% से 20% से भी नीचे हैं I जबकि जनसँख्या वृद्धि में हिन्दीभाषी राज्य हिंदीतर राज्यों से ज्यादा है. आप यह सोच रहे होंगे की राज्यों की विकास दर का भाषा की दशा से क्या लेना देना . पर यह समाया आ गया हैं की हम इस जान लें की हिंदी जनमघुट्टी की तरह नहीं पिलाई जा सकती और ना ही इस हम लाद सकते हैं I

हमें अंग्रेजी के समान्तर हिंदी भाषा का विकास करते हुए इसे उद्योग जगत की जरूरत बनानी होगी I कब तक हिंदी के लिए हम सरकरी फंड का मुंह जोहते रहेंगे . हमने हिंदी की ताक़त जान लेनी चाहिए. हिंदी किसी का मोहताज नहीं है और इसे बनाना भी नहीं है I क्या आप जानते हैं विश्व में सबसे ज्यादा बिकनेवाले शीर्ष 50 समाचारपत्रों में 4 समाचारपत्र हिंदी के हैं और भरते में शीर्ष 10 समाचारपत्रों में 3 हिन्दीभाषी समाचारपत्र हैं I

विश्व में कहीं भी हिन्दीभाषी लोग किसी भी परिवेश में हों और शायद हिंदी और संस्कृति से कोसों दूर हो , पर आज भी मेहंदी और संगीत में हिंदी संगीत ही बजता है और अन्ताक्षरी खेल में उनके होंठ हिंदी गाने ही गाते हैं I 

अन्तराष्ट्रीय उद्योग ने भी हिंदी की शक्ति को स्वीकार कर लिया है I गूगल , माईक्रोसोफ्ट , नोकिया , सैमसंग जैसे कंपनी हिंदी भाषा का उपयोग कर रही है I जहाँ 70% हिंदी जनता ग्रामीण इलाकों में रहती है वहां हिंदी का उपयोग इन कंपनियों के लिए विवशता है I हिंदी भाषी प्रदेशों के पिछड़ेपन की चाहे जितनी बात की जाएँ पर एक सत्य यह भी की देश का 32% मोबाइल उपभोक्ता यानि 20 करोड़ इन प्रदेशों में है I

यदि हर हिन्दी भाषी व्यक्ति हिन्दी के साथ किसी एक अन्य भारतीय भाषा को स्वीकार ले, उसे सीखने की कोशिश करे तो पूरे भारत के लोग दिल से हिन्दी को अपना लेंगे इसके लिए किसी बड़े आंदोलन की ज़रूरत नहीं होगी, पर ये पहल हिन्दी भाषी समाज को करनी होगी.1991 की जनगणना के अनुसार हिंदी भाषियों में दूसरी भाषा जानने वाले लोग सिर्फ 8 % और तीन भाषा मात्र 3% है जबकि अन्य भाष्यों में दूसरी भाषा और तीसरी भाषा की जानकारी रखने वालों का का अनुपात लगभग 10% से ज्यादा है I

1965 में भाषाई आधार पर राज्यों के गठन से ही हिंदी को हिंदी बहुल छेत्रों की छेत्रीय भाषा का दर्ज़ा मिल गया है और हिंदीतर राज्यों में हिंदी अपन्नाने पर विरोध होने लगे I हिंदी का विरोध राष्ट्र भाषा का विरोध नहीं बल्कि उत्तरभारत के राज्यों का विरोध मन जाने लगा I देश में उभरती छेत्रीय राजनैतिक पार्टियों ने हिंदी विरोध को मानो उत्तरप्रदेश और बिहार का ही विरोध मन लिया है I जहाँ गुजरात उच्च न्यायालय ने इसे गुजरात के लिए विदेशी भाषा बताया है वहीँ देश के कई हिंदीतर राज्यों में हिंदी छेत्रीयता के नाम पर संकीर्ण और छेत्रीय राजनीती का शिकार होने लगी है I यदि हम कुछ पल , राजनीति को दरकिनार कर दें तो संन्स्कृति और सभ्यता की साथ अहिन्दीभाषी जन समाज हिंदी को अपनाते हैं और सीखते हैं I भारत सरकार और हिंदी निदेशालयों के आंकड़ों का अध्ययन करा रही थी तो यह जान कर ख़ुशी हुयी की हिंदीतर राज्यों में हिंदी सीखने वालों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है I मैं स्वयं हिंदीतर राज्यों- दक्षिण राज्यों में रही हूँ और मैंने लोगों में हिंदी का सम्मान देखा है . कोशिश अब यह होनी चाहिए की हिंदी किसी संकीर्ण छेत्रीय राजनीति का शिकार न हो जाए I

बदलते सामाजिक परिवेश , उभरती छेत्रीय राजनैतिक ताकतें , जीवयापन के लिए लोगों का आवागमन और आधुनिक प्रसार और प्रचार की तकिनीकी को देखते हुए हिंदी के विकास के लिए नए सिरे से और नए तौर तरीकों से योजनायें बनाने की जरूरत है I शिष्यवृत्ति , अनुदानों और कानूनी प्रावधान भर पहना देने से अब हिंदी की दशा में सुधार नहीं होगा I

हिंदी की ताक़त को बढ़ते उपभोक्तावाद संस्कृति से जोड़ने की सख्त जरूरत है I व्यवसायीकरण के युग में हिंदी के उपयोग की महत्ता ही हिंदी की दशा निर्धारण करेगी और यही हिंदी के दशा में सुधार लाने की सटीक दवा साबित होगी I " इंग्लिश स्पीकिंग " बोर्डों की जगह " हिंदी सीखिए " जब दिखाई देने लगे , समझ लीजिये हिदी की शक्ति का सही उपयोग करने में हम सफल रहे हैं I 

जय हिंद

poonam shukla

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