Sunday, March 11, 2012

Leadership : Rahul Vs Akhilesh :उत्तरप्रदेश चुनाव का नेतृत्व विश्लेषण


"We are not friends, we are just political acquaintances.हम  दोस्त नहीं  है   हम   सिर्फ राजनैतिक परिचित हैं " by Akhilesh on Rahul  while UP byelection Firozabad after defeat of His Wife

कुछ  महीनो पहले  उत्तरप्रदेश में हुए उपचुनाव में   राहुल  गाँधी द्वारा किये गए कांग्रेस प्रचार और कांग्रेस की वापसी का प्रतीक माने जाने वाले  इस उपचुनाव के  नतीजे में अपनी पत्नी डिम्पल   की करारी हार    के बाद  अखिलेश  यादव  ने  युध्ध की  घोषणा कर दी थी .... यह शुरुवात थी  " अखिलेश यादव विरुद्ध  राहुल गाँधी " के महाभारत की जो शायद तब राजनीती के जानकार भी नहीं समझ नहीं पाए . इस करारी शिकस्त ने अखिलेश को मानो बदल दिया हो   और  एक  आग  उनके  मन में लगी हो .


राहुल और अखिलेश :  दोनों ही आधुनिक भारत के यूथ ब्रिगेड , भारत की राजनैतिक विरासत में जन्मे और पले हुए , एक  कांग्रेस के राजकुमार  तो दुसरे समाजवादी पार्टी के युवराज , दोनों ही  उत्तरप्रदेश से सांसद . दोनों के हाथों उनकी पार्टियों के  चुनाव प्रचार की बागडोर . दोनों पर उनके पार्टी नेताओं का विश्वास  और प्रचार में खुली छूट .

अखिलेश की तरह ही राहुल ने अपने पार्टी के चुनाव प्रचार के नेतृत्व  आगे आ कर किया . कई विषम परिस्थितियों में , 22  साल से टूटी , लुप्त हुयी और सत्ता से दूर रही पार्टी को संभाला . उन्होंने भी काफी मेहनत की  200  से ज्यादा मीटिंग्स और दिन रात की यात्राएँ.  

अखिलेश , एक "अपने ही मोहल्ले गल्ली का बच्चा " का रूप लिए जेहां भी गए , और जब से Sept 2011 से उन्होंने साइकिल यात्रा शुरू की , सक्रिय युवकों की भीड़ उन्हें " भैया " कहते हुए जुटने और उमड़ने लगी. अखिलेश ने भले ही अपने भाषणों से कोई आग ना उगली हो  या पंच लाइन नहीं दी हो , लेकिन वे लोगों के हुजूम के बीच रहे , युवको से जिस तरह मिले , उनसे एक अपनापन रिश्ता सा बनाने लगे और उनके साथ पल बिताये , समाजवादी पार्टी की लहर सी बनने लगी .

अखिलेश ने सबसे प्रभावशाली अभियान का संचालन किया था . नियंत्रित पर अति सशक्त . उन्होंने विवेक पर निर्भरता रखी बजाये  भावनायों में बहने के. उन्होंने अपमानजनक या अपघर्षक शब्दों का प्रयोग नहीं किया . राहुल के किसी बी ग्रेड फिल्म की याद दिला देने वाले तमाशे के बिलकुल विपरीत प्रभावशाली प्रर्दशन करते रहे.   उन्होंने  D P यादव को पार्टी में शामिल करने का खुल कर  ; पर बिना क्रोध या अनियंत्रित  विरोध दिखा कर अपने प्रभाव को जाता दिया . उन्होंने किसी वोट  बैंक या आरक्षण को भी खुश करने में वक़्त बर्बाद नहीं किया . 

राहुल के   राष्ट्रीय व्यक्तित्व  की  छवि के  सीधे विपरीत अखिलेश ने जमीन से  जुड़े  होने की छवि का निर्माण किया . राहुल के नकारात्मक प्रचार  जो अधिकतर मायावती सरकार की बुराईयों और अन्याय पर निशाना  भर   था  , अखिलेश ने विकास के मुद्दों पर जोर देते  हुए " मुफ्त लैपटॉप" की बातें कर उत्तरप्रदेश की जनता में चुनावी वातावरण  को नया आयाम , नयी हवा देने की सफल कोशिश की .

भारी सुरक्षा घेरे में बंधे राहुल  , लकड़ी की बाड़ के उस पार जुटे  दर्शकों और भीड़ को मंत्रमुग्ध तो कर देते हैं  पर मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश बिना किसी ढोंग के अपनी  छवि  जनता के बीच उन्ही के गल्ली-मोहल्ले का बच्चा होने की बना लेते हैं  

राहुल में पूरे उत्तरप्रदेश में  भारी जुटी भीड़ को संबोधित करते हुए एक उल्लेखनीय इमानदारी  के कमी दिखाई देती है , जबकि दूसरी तरफ , अखिलेश यादव विनम्र, मिलनसार , पार्टी के बड़े और पुराने लोगों को हाथ जोड़ कर नमस्ते करते हुए नज़र आते हैं  पार्टी कार्यक्रतायों को उनके नाम से   अदभुत प्रवाह से संबोधित करते रहे हैं. राहुल हमेशा यह जताते रहे की उत्तरप्रदेश उनके लिए महत्वपूर्ण है और उनके सोच में हैं और वे दलितों की बस्तियों और झोपड़ियों में रात बसेरा करते रहे वहीँ अखिलेश दूर से बने चबूतरों से कभी नहीं बोले , सुरक्षा घेरे से कभी बंधे नहीं रहे और तेज़ चाल से नीचे उतर कर दर्शकों की भीड़ में जा घुसते रहे .

राहुल का प्रचार अभियान इतने सावधानीपूर्वक  बुना और रचा गया था की वे  अभियान की  सहजता और आकर्षण खो चुके थे . इस अभियान कार्यकर्म में कोई मुख्य उद्देश्य नहीं था जो प्रचार के अंतिम पल तक टिका रहता . विभिन्न और कई बार  विरोधाभाषी  विचार , भटके हुए आवेगों से  चुनाव अभियान प्रभावित हुआ . कई बार ऐसा लगने लगा था किसी भी तरह के मज़बूत आधार के अनुपस्थित होने की वज़ह से फोटो या टीवी कैमरों में आने के लिए कुछ हरकतों पर निर्भरता होने लगी है .

राहुल की आत्म धारणा थी की वे एक  सच्चे , जमीन से जुड़े राजनैतिक नेता है , जो कठिन विषयों पर भी बातें करते हैं , जमीनी समस्याओं को जान लेते हैं , सही समय पर कार्यवाई भी करते हैं . हवाई बातें और ऊँची आसमानी सपने दिखने वाले टेलीविजन कैमरों और पत्रकारों ने उन्हें हिंदी भाषी राज्य का महानायक बनाना शुरू कर दी . इन्ही भीड़ को राहुल  के दृष्टिभार्म ने  अपना वोटर मान लिया .

यह अब लगने लगा था की कांग्रेस का मुख्य चुनाव प्रचारक  और पार्टी का चेहरा एक हवा के बुलबुला सा हो रहा हैं , वास्तविकता के कठोर हवायों से काफी अलग और दूर........उन्हें तो यह भी नहीं पता चला  की , उनका प्रभाव  असल में  किसी भी छेत्र में चाहे  निजी या सार्वज़निक , व्यक्तिगत या राजनैतिक ,....  मार्मिकता और करुणा की वज़ह से उपज रहा है ; जो  उनके और उनके परिवार को हर चीज़ में सहायता करता रहा है .
एक बेटी अपने मां के गालों  की चुटकी ले रही है , मेंडक के ऊपर बहिन का मजाक हो रहा है  शायद यह अहसास जताते हुए की उनके भाई एक खूबसूरत  राजकुमार हैं , एक पूरा  परिवार जो  चुनाव अभियान के  पिकनिक भ्रमण बच्चों सहित निकला है , बच्चो की मासूम तस्वीरें दिखाई जा रही हैं , और साले साहेब के इंटरवीयू  लिए जा रहे हैं , .......जो नहीं जानना चाहते उन्हें उनसे भी  ज्यादा जानकारी दी जा रही है ... यही राहुल के राजनीति अभियान के अलंकरण और आभूषण थे ....पता नहीं , जनता को किस राजनीती की संकेत दिए जा रहे थे और क्या बताना चाहते थे ???

अखिलेश ने समाजवादी पार्टी की सोच को नयी दिशा दी .  जातिगत विचारधारा को परिवर्तित करते हुए , मानव विकास के सभी पैमानों पर पिछड़े और  देश के सबसे अधिक जनसँख्या वाले राज्य के युवको की आकान्छायों और सपनो से आपने आप को और पार्टी को जोड़ा . अखिलेश ने  9000 KMs  कम से ज्यादा   यात्रायें की .उत्तरप्रदेश की तंग धूलभरी गललियों में साइकिल की से ..राज्य की 403 विधानसभा छेत्रों में 250 छेत्रों का  स्वंय  दौरा किया .....लोगों से अपने संपर्क बढाये......बड़े धैर्य से लाठीचार्ज को भी झेला .....चापलूसी और चिकनी चुपड़ी बातों को सरलता से लिया ...मंच पर  नीचे से फेंके जाने वाले गेंदे फूल की मालायों के लिए भी अपना सर उन्होंने झुकाया . अपने पार्टी कार्यकर्तायों के नाम से बुलाते रहे और उन्हें अपने   साथ दौरों पर बस में भी बैठाते रहे .उनके भाषण संक्षेप , रोचक और ओजस्वी रहे. उन्होंने मायावती की बुराईयों को भी , कहीं कहीं हास्य का सहारा लेते हुए जिक्र किया विगत 6 महोनों में 800 से ज्यादा रैल्लियाँ की. 

जहाँ राहुल गाँधी  one man show  थे..... कांग्रेस पार्टी की अन्दूरनी  संगठन व्यवस्था कमज़ोर थी और आपसी खींचातानी और आंतरिक विरोधों का सामना करना पड़ा हमेशा केंद्रीय और राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के झुण्ड से घिरे रहे या उनके व्यूह में फंसे रहे..अखिलेश ने  राज्य की मिटटी में चल कर लोगों से अपना संबध बनाते रहे ...एक नए सोच और एक नयी दिशा की आशा की किरण लोगों में जगाते हुए ....



poonam shukla

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