Saturday, May 5, 2012


मैं खोज रही हूँ " उसको" जो हर जगह व्याप्त है , पर खोज न पायी.
धर्मगुरुयों के द्वार खडी चीखती चिलायी , पर "उसे" खोज न पायी.

धर्मस्थलों की सीढ़ियों पर , व्यवसाव को फैलते देखा.
धर्म के ठेकेदारों को धर्म के नाम पर लूटते देखा .
बड़े बड़े भंडारे देखे , बड़े बड़े अनुष्ठान देखें
वहीँ किसी कोने पर लोगों को दाने दाने पर मरते देखा .

तर्कों में , प्रवचनों में , पाठों में , कृपाओं में ढूंढती रही ,
फिर भी दरबारों में , शिविरों में , "उसे " खोज न पायी.

हर ह्रदय में वह रहता है, पर हर ह्रदय को सिकुड़ता देखा
हर पुण्यों में वह मिलता है , पर हर पाप को बढ़ते देखा
हर जुबान उसकी है , पर हर जुबान को जहर उगलते देखा
हर कण कण में रहनेवाला वह , पर लोगों को भटकते देखा

हर इंसान में बसता है वोह , पर वहां भी उसे खोज न पायी
इस इंसानी बस्ती में , एक अदद इंसान भी खोज न पायी.

Poonam Shukla.
(यह भावनात्मक कविता सामाजिक स्तर पर है. किसी भी धर्म , धर्मगुरु या धर्मस्थल से संबधित नहीं हैं .The poem is on social subjects and does not indicate any specific religion, religious leader/person and Religious place.चित्र केवल साहित्यिक प्रतीकात्मक है .Image is only literary representation)

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