Sunday, July 1, 2012


कांपते हुए लफ़्ज़ों का गीलापन छुपा नहीं सके ख़त में ,तुम मुस्कराहट भेजते हो ,और हम आंसू पढ़ लेते हैं
हमने सीख ली नदियों से,लहरों का पर्दा-दारी में बहना, ऊपर से हँसते रहते हैं , पर गहराई में हम रो लेते हैं
यह शहर भी अजीब है ,भाग दौड़ में खो जाते हैं मेरे दोस्त ,चंद लम्हों के लिए कई लम्हों का हिसाब करते है
पर उनकी मजबूरियों की मासूम उदासी की शोख अदाएं, मिलने के कुछ हसीन पल , बहलते हम खो लेते हैं .

poonam shukla

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