Wednesday, June 12, 2013

"नक्सल भस्मासुर : खाकी से खादी ..क्या है इसका हल ?"




ज्वलनशील , सशक्त और गंभीर लेख :आज मुंबई प्रमुख अखबार " हमारा महानगर " -मेरा लेख
http://www.hamaramahanagar.in/20130612/page4.html
"नक्सल भस्मासुर : खाकी से खादी ..क्या है इसका हल ?"
क्या नक्सल समस्या का जीवित रहना राजनीती शतरंज की बिसात का असली मुद्दा तो नहीं है ?

छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में करीब 200 नक्सलियों ने हमला कर सलवा जुडूम के संस्थापक व कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा और पूर्व विधायक उदय मुदलियार समेत 27 लोगों की हत्या कर दी। इस हमले में पूर्व मंत्री विद्या चरण शुक्ल को भी गोलियां लगी । इस हमले ने पूरे देश को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है, कि कब रुकेंगी ऐसी घटनाएं .छत्तीसगढ़ हमले के बाद सकते में आई केंद्र सरकार व सुरक्षा एजेंसियां नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की तैयार में जुट गई हैं। यह पहली बार हुआ की इतने बड़े स्तर पर वरिष्ठ नेतायों पर घटक हमला हुआ हो और सरकारी तंत्र बेबस और लाचार नज़र आया . इस हमले ने हमारी सुरक्षा व्यवस्था का मजाक तो उड़ाया ही है , प्रशासन के दावों को खोखला साबित कर दिया .

यह एक निंदनीय घटना तो है ही पर हम नक्सल के हमलों का अध्ययन करें तो पता चलेगा की कमज़ोर राजनैतिक इच्छाशक्ति और ढुलमुल सरकारी रवैये ने हमें कितना कमज़ोर कर दिया है . वोटों की राजनीती ने इस समस्या को भस्मासुर की तरह बढाया . गृह मंत्रालय के रिपोर्ट में अनुसार 2008 से 2012 तक 9230 के लगभग नक्सली वारदातें हुयी जिसमे 1100 जवान शहीद हुए और सिर्फ 760 के करीब नक्सली मारे गए .

एक रिपोर्ट के अनुसार 2005 से 2013 तक 6107 लोग नक्सली हमलों में मारे गए जिसमे 2531 नागरिक , 1581 सुरक्षा जवान और 1995 नक्सली थे. इसमें हज़ार के लगभग सुरक्षाकर्मी तो
सिर्फ छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में शहीद हुए और उतने ही नागरिक मारे गए .
क्यों हम खाकी पहने वाले इंसान को सिर्फ सूखे पत्तों के तरह मरने वाली चीज समझ लेते हैं . अप्रैल 2010 में नक्सलीयों ने सुरक्षा बल के कैंप पर हमला कर 75 जवानों को मार दिया था। तो कहां थे मंत्री महोदय उस वक़्त जब 75 वर्दियां लहूलुहान हो गयी थी ? देश भर के किस गलियों में में छुपे थे मानवाधिकार की चिल्लपों कर अपनी दुकान चलने वाले ठेकेदार और टीवी पर बहस करने वाले बुद्धिजीवी वर्ग ? तब क्यूँ नहीं नहीं बनाई गयी समितियां और मुठभेड़ की समीक्षा की गयी ? मुझे यह बहस नहीं करनी है की क्या सही हैं या गलत !

किसी निर्दोष के खून की वकालत कोई भी सभ्य समाज कभी नहीं कर सकता पर यहाँ मुद्दा कुछ और है ? किन वातावरण और बंदिशों में पुलिस का जवान मौत से लोहा लेता है उसे नज़रअंदाज कर उसके हर काम की निंदा करना आज के आधुनिक समाज का फैशन हो गया है. उनके द्वारा किये गए हमलों को फर्जी करार कर हम कितनी आसानी से सुरक्षा बलों के मनोबल को तोड़ देते हैं और शहीदों के खून की राजनीती के गंदे खेल में हर पल उस शहादत को अपमानित करते हैं. आखिर क्यों ?

भारत के करीबन 12 राज्यों के लगभग 125 जिलों में नक्सल ने अपना कब्ज़ा सा बना लिया है. भारत के गृह सचिव जी के पिल्लई के अनुसार नक्सल सालाना $300 मिलियन यानी 1400 करोड़ रुपया की उगाही करते है . यह गरीबों एवं आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई का दिखावा कर रहे नक्सल के किस आर्थिक विकास अजेंडा है ? सरकार के ही आंकड़े यह बताते हैं की 1980 से अबतक लगभग 11575 लोग नक्सल आतंक का शिकार हुए हैं जिसमे 6377 नागरिक , 2285 सुरक्षा बल कर्मी और सिर्फ 2913 नक्सलवादी हैं. प्रश्न है की इन 9000 नागरिकों और जवानों की मौत का मानवाधिकार कौन देख रहा है. ? इतनी मौतों की कौन सी जाँच की जा रही है ? 1980 से लेकर आज तक कितने कदम उठाये गए हैं ?

'बच्चे और सशस्त्र विरोध' नामक अपनी वार्षिक रपट में संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि नक्सली बच्चों
को दस्ता बनाकर अपना दायरा विस्तृत कर रहे हैं.सशस्त्र नक्सली बच्चों की नियुक्ति करने के साथ ही उन्हें नक्सल आंदोलन के लिए बौद्धिक स्तर पर तैयार कर रहे हैं। बड़े स्तर पर अपने फैलाव के लिए नक्सली इन बच्चों का बाल दस्ता, बाल संघम और बाल मंडल बना रहे हैं.

मानवाधिकार के बुद्धिजीवी क्या यह जानते है वर्षों से CRPF टुकड़ियाँ और पुलिस के जवान बीहड़
जंगलों में बुनियादी नागरिक सुविधायों से दूर लगे हुए हैं और इस डर से की कब उनकी गाडी किस बारूदी सुरंग का शिकार हो जाए ? सरकार और नक्सल दोनों के बीच फंसे यह जवान बहनों की शादी , बुडी अम्मा की खांसी और अपने बड़ते बच्चों की मुस्कराहट के लिए तरसते हुए , अखबारों में नेताओं के भ्रष्ट काले कारनामें और बुद्धिजीवों की अनर्गल प्रलाप को भी जानते हुए इस लिए शहीद होने को तैयार हैं ताकि हम और आप काफी की चुस्कियां लेकर बहस कर सके. क्या इन सबका हल सिर्फ कानून और खाकी है ?

केंद्र सरकार नक्सल प्रभावित प्रत्येक जिले में विकास कार्यो के लिए अलग से प्रति वर्ष 55 करोड़ रूपए का अनुदान दे रही है . इनमें आदिवासी क्षेत्रों का संवेदनशील तरीके से विकास, पर्याप्त सुरक्षा बलों की तैनाती और राजनीतिक प्रक्रिया को मजबूत करना शामिल है. जिस देश में सामाजिक रूप से अभी भी भारी विषमतायें हैं. 40 % जनसंख्या भी अनपढ़ हैं . 43 % बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. 42% आबादी गरीबी रेखा के नीचे है सार्वजनिक वितरण प्रणाली आधी आबादी तक नहीं पहुँच पा रहे है. भ्रस्टाचार से त्रस्त होकर देश के युवक बेकारी और हताशा के शिकार हो रहे हैं. देश के विकास कार्यों और योजनायों का लाभ जनता तक पहुँच ही नहीं पा रहा है जो आक्रोश को पैदा कर रहा है.

कमरों में बैठकर नीति बनाने और बहस करने से बहुत अलग स्थिति गोलियों का सामना करनेवाले सुरक्षाबलों को झेलनी पड़ती है. राजनैतिक दलों के पास विकास का मुद्दा सिर्फ नारों में वोटों के लिए रहा गया है . जांत पांत , धर्म और सामाजिक संबधों में दरार की राजनीती खेल कर सत्ता के गलियारों में पहुँचने वाले नेताओं , आपराधियों के सहारे वोट बटोर कर कुर्सी हथियाने वाले और आये दिन घोटालों की समाचारों में महंगाई से परेशान जनता ...क्या इन सबका हल सिर्फ कानून और खाकी है ? क्या नक्सल समस्या का हल , विकास के नाम पर आबंटित हो रहे करोड़ों के फंड भ्रस्टाचार का शिकार तो नहीं हो रहे हैं ?

क्या नक्सल समस्या का जीवित रहना राजनीती शतरंज की बिसात का असली मुद्दा तो नहीं है ?

यह सभी स्वीकार करते हैं की विकास और आर्थिक समृधि ही नक्सल का हल निकाल सकती है. पर 2010 के एक सर्वे के अनुसार हमारी नारेबाजी और जवानों के शहीद होने पर घडियाली आंसू बहाने वाली सरकार और चाक चौबंद हो जाने का दावा करने वाला असहाय प्रशासन , की कारगुजारी चौकाने वाली है . 2006 के वन मान्यता कानून के तहत आदिवासियों को वन जमीन के आबंटन में ढिलाई बरती गयी . बिहार में मात्र एक तिहाई अधिकारों का निपटारा हुआ . नक्सल की जबरदस्त मार झेल रहे झारखण्ड में यह केवल 15 % ही था. कांकेर - छत्तीसगढ़ जहाँ आयेदिन नक्सल मुठमेड की खबरें आती रहती है , में 60 % जनसँख्या पिछड़े वर्ग की है. इसके बावजूद ग्रामीण रोजगार योजना का सिर्फ 5% बजट क्रियान्वित किया जा सका. यह सिर्फ कुछ उदहारण है.

विकास योजनायों की हालत , विस्थापित एवं पुनर्वास जैसे गंभीर विषयों में उदासीन सरकार और भ्रस्टाचार में लिप्त राजनैतिक ढांचा ...क्या सिर्फ बंद हाथों में दिए गए हथियारों के बल पर ही नक्सल का हल खोजा जाएगा . आवश्यकता है एक सशक्त राजैतिक इच्छा शक्ति की, एक प्रभावशाली और सक्षम नेतृत्व की ,और संकल्प के साथ विकास और योजनायों को आदिवासियों के घर तक पहुंचाने की. शायद हम ऊँचे फ्लायोवर , मेट्रो रेल प्रोजेक्ट , छः आठ लेन वाले एक्सप्रेस वे में कहीं विकास ढूँढने लगे है और यह भूल गए है की भारत की 70% से अधिक आबादी इन सबसे कहीं दूर दैनिक जीवन यापन की कशमकश में है.

सिर्फ कुछ और लहूलुहान होती खाकी वर्दियों की गिनती भर कर लेने से या पुलिस अधिकारीयों के निलम्बन या तबादले से इस सामजिक समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता . यदि लड़ना है तो सरकार की उस वयवस्था से लड़ा जाए जो इन विकास को रोक रखे है . यदि आवाज उठानी है तो वहां उठायें जहाँ नीतियां और योजनायें बनाई जा रही है . यदि नष्ट करना है तो भ्रस्टाचार और सुस्त प्रणाली को नष्ट करें ....हथियारों से प्रश्न नहीं सुलझते . पर सवाल यह है की विगत 66 सालों से इस समस्या पर बहस हो रही है. हथियारों और वोट बैंक पर टिकी कुर्सियों के सौदागर इसका हल निकालना चाहेंगे या गोलियों से छलनी वर्दियों पर काफी की चुस्की ले रहे मानवाधिकार की दुकान चला रहे लोग इस समस्या की जड़ तक जाना चाहेंगे ??? याद रहे यह भस्मासुर अब खाकी की बजाय खादी को अपना शिकार बना रहा है .
Poonam Shukla
www.poonamshukla.in

Thursday, May 30, 2013

इस शहर की छतें कितनी अजीब है

इस शहर की छतें कितनी अजीब है.....मेरे हिस्से की हवा , मेरे हिस्से का सूरज और मेरे हिस्से की चांदनी छीन लेते हैं...!
इस शहर की सड़कें भी कितनी बेईमान हैं ....लोग रात की दो रोटी के लिए ; दिन भर की जिंदगी दांव पर लगा लेते हैं....!!
क्या रहस्य है इन गलियों में ; पनघट की हंसी , सरपंच की चौपाल और डीव बाबा के ठौर गायब हो गए इसके आगोश में ....
वक़्त का शिकार है या हालात की मजबूरी , पड़ोस के घर का हुआ हादसा भी ,लोग चलते चलते अखबार में पढ़ लेते हैं ...!!!!
poonam shukla

Photo: इस  शहर की छतें  कितनी अजीब है.....मेरे हिस्से की हवा , मेरे हिस्से का सूरज और मेरे हिस्से की चांदनी छीन लेते हैं...!
इस शहर की सड़कें भी कितनी बेईमान हैं ....लोग रात की दो रोटी  के लिए ; दिन भर की  जिंदगी दांव पर लगा लेते हैं....!!
क्या रहस्य है इन गलियों में ; पनघट की हंसी , सरपंच की चौपाल और डीव बाबा के ठौर  गायब हो गए  इसके आगोश में ....
वक़्त का शिकार है या हालात की मजबूरी  , पड़ोस के घर का हुआ हादसा भी  ,लोग  चलते चलते अखबार में पढ़  लेते हैं ...!!!!
poonam shukla

इस दोस्ती से हमें इश्क है जनाब , इश्तिहार नहीं है !!!

न झूठ , ना मक्कारी है ...न फरेब , ना दगा है , शायद मेरे पास जीने का हथियार नहीं है !!!
हम दुखों की नुमाईश नहीं करते , दोस्ती के बाज़ार में "लेबल" लगा मेरा प्यार नहीं हैं !!
रखते हैं अपने को जिन्दगी के इम्तिहान में , वक़्त तौलता है हमें अपनी तराजू में ,
आपसे दोस्ती खुदा की मेहेरबानी है , इस दोस्ती से हमें इश्क है जनाब , इश्तिहार नहीं है !!! 
( Poonam Shukla)Photo: न झूठ  , ना मक्कारी है ...न फरेब , ना  दगा है , शायद मेरे पास  जीने का हथियार  नहीं है   !!!
हम  दुखों की नुमाईश नहीं करते , दोस्ती के बाज़ार में "लेबल" लगा मेरा प्यार नहीं हैं !!
रखते हैं  अपने को जिन्दगी के इम्तिहान में , वक़्त तौलता है हमें अपनी  तराजू में ,
आपसे दोस्ती खुदा की मेहेरबानी है , इस दोस्ती से हमें इश्क है जनाब ,  इश्तिहार नहीं है !!! 
( Poonam Shukla)

दोस्तों को समर्पित ...

दोस्तों को समर्पित ...

हम दुनिया को बताने चले आये..अपनी दिल की बात सुनाने चले आये;
उन्होंने फूलों की बात की थी शायद , हम काटों को चुभाते चले आये !

वेह ज़िन्दगी के खुशनुमा पहलु में थे , हम सच्चाई को बताते चले आये.
सोने की पूरी तयारी कर ली थी उन्होंने , हम उन्हें जगाने चले आये !

हम दोस्ती में पागल थे , हमारें आसूं की हर बूंदों का मोल ना कर
जो नफरत के पानी में भी , दोस्ती की आग लगाने चले आये !

हर कोई हाथों में पत्थर लिए हमें दुढ्ने लगा, सच का मुवयाजा देने ,
फिर भी हम इन पत्थरों के दिलों में जिंदगी की प्यास बढाने चले आये !

टूटने लगे थे हम , हताश हो रहे थे हम , लफ्जों पर लगे पहरों से परेशां थे हम,
पर कुछ ऐसे दोस्त भी थे जो हमें इस राह पर हिम्मत दिलाने चले आए !

हमने कभी नहीं चाहा था कोई दोस्त मिले किसी साधू- सा ,
पर वे दोस्ती का साथ निभाते मेरे, हमसफ़र, अदद इंसान सा चले आये !

Photo: दोस्तों को समर्पित  ...

हम दुनिया को बताने चले आये..अपनी दिल की बात सुनाने चले आये;
उन्होंने फूलों की बात की थी शायद , हम काटों को चुभाते चले आये !

वेह ज़िन्दगी  के खुशनुमा पहलु में थे , हम सच्चाई को बताते चले आये.
सोने की पूरी तयारी कर ली  थी  उन्होंने , हम उन्हें जगाने चले आये !

हम दोस्ती में पागल थे , हमारें  आसूं  की हर बूंदों का मोल ना कर
जो नफरत के पानी में भी , दोस्ती की  आग लगाने  चले आये !

हर कोई हाथों में पत्थर लिए हमें दुढ्ने लगा, सच का मुवयाजा देने  ,
फिर भी हम इन पत्थरों के दिलों में  जिंदगी की प्यास बढाने चले आये !

टूटने लगे थे हम , हताश हो रहे थे हम , लफ्जों पर लगे पहरों से परेशां थे हम,
पर कुछ  ऐसे दोस्त भी थे जो हमें इस राह पर हिम्मत दिलाने  चले आए !

हमने कभी नहीं चाहा था कोई  दोस्त मिले किसी साधू- सा ,
पर वे  दोस्ती का साथ निभाते  मेरे, हमसफ़र, अदद  इंसान सा चले आये !
- Poonam Shukla

- Poonam Shukla

मैं वही शक्ति हूँ , मुझे जीने दो !!

मैं भारत की तस्वीर हूँ ,कल के भारत के भविष्य की जननी हूँ ,
आँचल में दूध और आँखों में पानी , अब यह मेरी जुबान नहीं हैं .
"जय माता दी " चिल्लाने वालों मेरी आँखों में झांक कर देखो ,
मैं वही शक्ति हूँ , मुझे जीने दो !!
Photo: मैं भारत की तस्वीर हूँ ,कल के भारत के भविष्य की जननी हूँ ,
आँचल में दूध और आँखों में पानी , अब यह मेरी जुबान नहीं हैं .
"जय माता दी " चिल्लाने वालों मेरी आँखों में झांक कर देखो ,
मैं वही शक्ति हूँ , मुझे जीने दो !!

पुरुष के अहंकार की गाली का हर शब्द अब मैं नहीं हूँ . 
मैं अग्निपरीक्षा की सीता नहीं हूँ और जुए में हारी द्रौपदी भी नहीं हूँ,
गर्भ में ही मरने वाली या फिर सड़कों पर रौंद दी जाने वाली वस्तु नहीं हूँ 

सड़कों के नारों के वीर नहीं , कैमरों में चमकते योध्दा नहीं , बल्कि हर कतरे लहू का उबाल चाहती हूँ 
गंगा ब्रह्मपुत्र की हर मौजों में इन्कलाब ,हिमालय को पिघलाता , हिंद्सागर से उफनता , एलान चाहती हूँ 
यह सूफी संतों की भूमि है , यह राम कृष्ण की धरती है , यह गाँधी भगत की जननी है, 
हर गली -चौराहों में ,हर बस्ती - गलियारे में , हर दिल , हर आँखों मैं नारी का सम्मान चाहती हूँ !

मैं समाज का स्वाभिमान बनना चाहती हूँ , हर परिवार की शान बनना चाहती हूँ
हाँ ! मैं नारी हूँ
पर समाज की कमजोरियां नहीं हूँ मैं , मुझे जीने दे सके वह भगवान् चाहती हूँ ,
हाँ मैं नारी हूँ ,
पर बन्धनों से अलग कर सबला बना सके मुझे ,ऐसा मैं समाज चाहती हूँ .
मुझे मेरी जीने की साँसे ना छीनो , मैं भी बढ़ने के लिए अपने हक का आसमान चाहती हूँ . 

Poonam Shukla
पुरुष के अहंकार की गाली का हर शब्द अब मैं नहीं हूँ .
मैं अग्निपरीक्षा की सीता नहीं हूँ और जुए में हारी द्रौपदी भी नहीं हूँ,
गर्भ में ही मरने वाली या फिर सड़कों पर रौंद दी जाने वाली वस्तु नहीं हूँ

सड़कों के नारों के वीर नहीं , कैमरों में चमकते योध्दा नहीं , बल्कि हर कतरे लहू का उबाल चाहती हूँ
गंगा ब्रह्मपुत्र की हर मौजों में इन्कलाब ,हिमालय को पिघलाता , हिंद्सागर से उफनता , एलान चाहती हूँ
यह सूफी संतों की भूमि है , यह राम कृष्ण की धरती है , यह गाँधी भगत की जननी है,
हर गली -चौराहों में ,हर बस्ती - गलियारे में , हर दिल , हर आँखों मैं नारी का सम्मान चाहती हूँ !

मैं समाज का स्वाभिमान बनना चाहती हूँ , हर परिवार की शान बनना चाहती हूँ
हाँ ! मैं नारी हूँ
पर समाज की कमजोरियां नहीं हूँ मैं , मुझे जीने दे सके वह भगवान् चाहती हूँ ,
हाँ मैं नारी हूँ ,
पर बन्धनों से अलग कर सबला बना सके मुझे ,ऐसा मैं समाज चाहती हूँ .
मुझे मेरी जीने की साँसे ना छीनो , मैं भी बढ़ने के लिए अपने हक का आसमान चाहती हूँ .

Poonam Shukla

एक हरी खाकी वर्दी की चीख

Photo: एक हरी खाकी वर्दी की चीख 

मैं नहीं जानता ;क्या कहते है मेरे देश के लोग ,
क्यूंकि मेरे लिए कोई नहीं जाता इंडिया गेट , कैंडल लिए 
क्या लिखते हैं अखबार , क्या चीखते है टीवी के लोग;
क्यूंकि मानसिक रूप से विकसित लोग   बहस नहीं करते ,मेरे लिए ,

वर्दियों से राशन तक , गोलियों से गाड़ियों तक , सबकी बोली लगी है....
पर
मेरी मां की खांसी ,
इंतज़ार करते पिता के टूटे चश्मे , 
हर साइकिल की घंटी पर दरवाजे की तरफ ताकती;
 बचपन के ही कपड़ों में बढ़ी होती मेरी बहना,
बारूदी सुरंगों के हर खबर पर , मेरी सलामती की  दुआ लिए 
गाँव के मंदिर की तरफ भागती मेरी पत्नी , ,
बोलो , क्या मोल लगाओगे ?????

मेरे; तुम सबकी हिफाज़त के लिए बलिदान होने के जज्बात का , 
नक्सल-आतंकवादी-दुश्मनों की ओर सीना तान खड़े रहने के हौसलों का ,
बर्फीले पहाड़ , जलते रेगिस्तान और दलदले जंगल में ढलती जवानी का ,
बतायो , इनकी कितनी दलाली पायोगे ????

मेरे शरीर से जश्न मनाते  हैं  दुश्मन के लोग ,
यह राजनैतिक नपुसंकता कब तक निभाओगे ???
अब तो मेरे बलिदान हुए जिस्म में जिन्दा बम लगा देतें हैं 
आपकी  सियासी और सामाजिक  चालों के प्यादे  ........

देश के वोटों के  बाज़ार में बिकते जमीरों के बीच  ;  
मेरी देशभक्ति की MRP ( कीमत ) क्या बतायोगे ?

poonam shukla
एक हरी खाकी वर्दी की चीख 

मैं नहीं जानता ;क्या कहते है मेरे देश के लोग ,
क्यूंकि मेरे लिए कोई नहीं जाता इंडिया गेट , कैंडल लिए 
क्या लिखते हैं अखबार , क्या चीखते है टीवी के लोग;
क्यूंकि मानसिक रूप से विकसित लोग बहस नहीं करते ,मेरे लिए ,

वर्दियों से राशन तक , गोलियों से गाड़ियों तक , सबकी बोली लगी है....
पर
मेरी मां की खांसी ,
इंतज़ार करते पिता के टूटे चश्मे ,
हर साइकिल की घंटी पर दरवाजे की तरफ ताकती;
बचपन के ही कपड़ों में बढ़ी होती मेरी बहना,
बारूदी सुरंगों के हर खबर पर , मेरी सलामती की दुआ लिए
गाँव के मंदिर की तरफ भागती मेरी पत्नी , ,
बोलो , क्या मोल लगाओगे ?????

मेरे; तुम सबकी हिफाज़त के लिए बलिदान होने के जज्बात का ,
नक्सल-आतंकवादी-दुश्मनों की ओर सीना तान खड़े रहने के हौसलों का ,
बर्फीले पहाड़ , जलते रेगिस्तान और दलदले जंगल में ढलती जवानी का ,
बतायो , इनकी कितनी दलाली पायोगे ????

मेरे शरीर से जश्न मनाते हैं दुश्मन के लोग ,
यह राजनैतिक नपुसंकता कब तक निभाओगे ???
अब तो मेरे बलिदान हुए जिस्म में जिन्दा बम लगा देतें हैं
आपकी सियासी और सामाजिक चालों के प्यादे ........

देश के वोटों के बाज़ार में बिकते जमीरों के बीच ;
मेरी देशभक्ति की MRP ( कीमत ) क्या बतायोगे ?

poonam shukla

क्या देखूं...आज के समाचार....

क्या देखूं...आज के समाचार....
विकास के आंकड़े कब का भूल गए , योजनायों के गणित फाईलों में खो गए ,
सड़ता अनाज , , गायब स्कूल ,नदारद दवाएं , सूखे नलकूप ,
महँगी होती जाती है रोटी का हर कौर ,

रैलियों और भाषणों में , जांत-पांत और धर्म के अलगाव पर खेली जाती घिनौनी राजनीती में,
चुनावी रणनीति और वादों के जाल में , मेरे विकास , शिक्षा और स्वास्थ्य की बातें तो सदियाँ बीत गयी ....
आपस की यह बयानबाज़ी , एक दूसरे की खींचतान और कुर्सियों का गणित ...
क्या यही है मेरे देश का "फुल टाइम " राजनैतिक " टाइमपास "....

महंगाई और भ्रस्टाचार से कमजोर हुई मेरी मुठ्ठियों में ; यह देश फौलाद कैसे होगा
लुप्त विकास योजनायों , सरकारों के झूठे नारों से ; हमारा घर आबाद कैसे होगा Photo: क्या देखूं...आज के समाचार....
विकास के आंकड़े कब का भूल गए , योजनायों के गणित फाईलों में खो गए ,
सड़ता अनाज , , गायब स्कूल ,नदारद दवाएं , सूखे नलकूप ,
महँगी होती जाती है रोटी का हर कौर ,

रैलियों और भाषणों में , जांत-पांत और धर्म के अलगाव पर खेली जाती घिनौनी राजनीती में,
चुनावी रणनीति और वादों के जाल में , मेरे विकास , शिक्षा और स्वास्थ्य की  बातें तो सदियाँ बीत गयी ....
आपस की यह बयानबाज़ी , एक दूसरे की  खींचतान और कुर्सियों का गणित ...
क्या यही है मेरे देश का   "फुल टाइम " राजनैतिक  " टाइमपास "....

महंगाई और भ्रस्टाचार से कमजोर हुई मेरी  मुठ्ठियों में ; यह देश फौलाद कैसे होगा
लुप्त विकास योजनायों , सरकारों के झूठे नारों से ; हमारा  घर आबाद कैसे होगा 
सडकों पर , रैलीयों में , ,हम  अपने उज्जवल कल ; को तलाशतें रहते हैं ,
बयानबाज़ी की इस नौटंकी में  ; देश का भविष्य आजाद कैसे होगा !!

आप किसे क्या कहते हैं ....आप किसे क्या बनाते हैं   बताईये ...इससे मेरे विकास और देश हित का क्या सरोकार है 
मेरे विकास की बातें कब   टीवी पर सुनूंगा ......
मेरे लिए कब कौन बोलेगा।।

हर वक़्त टीवी न्यूज़ पर देखता हूँ.....कभी तो कोई मेरे लिए बातें करेगा.....
उस ब्रेकिंग न्यूज़ की तलाश आज भी है...... ( Poonam Shukla)
सडकों पर , रैलीयों में , ,हम अपने उज्जवल कल ; को तलाशतें रहते हैं ,
बयानबाज़ी की इस नौटंकी में ; देश का भविष्य आजाद कैसे होगा !!

आप किसे क्या कहते हैं ....आप किसे क्या बनाते हैं बताईये ...इससे मेरे विकास और देश हित का क्या सरोकार है
मेरे विकास की बातें कब टीवी पर सुनूंगा ......
मेरे लिए कब कौन बोलेगा।।

हर वक़्त टीवी न्यूज़ पर देखता हूँ.....कभी तो कोई मेरे लिए बातें करेगा.....
उस ब्रेकिंग न्यूज़ की तलाश आज भी है...... ( Poonam Shukla)

shayari

जिंदगी तो हमारी छपती है अख़बारों में ए दोस्त .दूरियाँ की वजह किसी की बे-ऐतीमदी का भी है !
दिल तो हमारा साफ़ निकला वफ़ा की दुकान में ...खोट कहीं न कहीं तराजू की तवाज़ुन का भी है !!
यूँ हीं नहीं बिक जाती सरेआम दोस्तियाँ बाज़ार में .....क़सूर कुछ तो सिक्कों की चमक का भी है !!!
आज भी मेरे घर के आगे मुहब्बत की तख्ती है ....कमी किसी के आँखों की दमक का भी है !!!! 

ज्योतिष और बदलता सामाजिक दृष्टिकोण

ज्योतिष और बदलता सामाजिक दृष्टिकोण 

एक सचाई जो शायद खुलकर स्वीकार न की जा सके , भौतिकवाद और उपभोक्तावाद के युग में भागती दौड़ती जिंदगियां , बिखरते और टूटते पारिवारिक संबंध , बढ़ती जाती मानसिक परेशानियाँ , तनावपूर्ण वातावरण , गिरते सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य और प्रतियोगिता के दौर में आगे रहने की लालसा से उत्पन्न असुरक्षा की भावना , मनुष्य के जीवन को एक नए आयाम दे रही है . समाज आधुनिकता की ओढ़ में हर प्राचीन ज्ञान को अन्धविश्वास का आवरण देकर नकारने की कोशिश भले कर रहा हो , पर अब लोग धर्म और ज्योतिष के जरिये हल खोजने लगे हैं . प्राचीन मान्यतों पर आस्था पुनः आने लगी है .

ज्योतिष का व्यवसायीकरण

यह ब्राह्मणों और ज्योतिषियों के लिए अत्यंत संवेदनशील समय है . समाज में उठ रहे इस विश्वास ने ब्राहमण और ज्योतिष वर्ग को नैतिक और बौधिक जिम्मेदारियां दी है . इनकी यह आस्थाएं आज के युग में खरी उतरें और मानव समाज का सही और उचित मार्गदर्शन हो , यह एक धर्म कर्तव्य है . जरा सी भी भूल या गलत उपयोग इस विश्वास को कहीं ज्यादा खतरनाक तौर पर समाप्त कर सकता है . इस विश्वास के अंत के साथ जो हानी ब्राहमण और ज्योतिष समाज को होगी , उसकी छति आनेवाले कई दशकों तक नहीं हो पायेगी.

शायद हम इस नैतिक जिम्मेदारियों को नहीं समाज पा रहे हैं इसीलिए TV चैनलों और अख़बारों के जरिये समाज की इस भावना का दुरूपयोग करते नज़र आ रहे हैं. व्यवसायीकरण प्राचीन धरोहर को कहीं मजाक का विषय न बना दे . भविष्यवाणी के नाम पर अजीबोगरीब सनसनी , तुरंत समस्यायों के हल , ज्योतिष विज्ञानं के नाम कर बेचे जा रहे मंत्र-यंत्र और हर सुबह ज्योतिष विज्ञानं के नाम पर छिछलेदार बातों का परोसना , समाज को इस अद्भुत और पवित्र शास्त्र का क्या रूप दिखाया जा रहा है . क्या हम लोग संस्कृत और ब्राहमणवाद का स्तर स्वंय ही नीचे नहीं कर रहे हैं ? ज्योतिष विद्या को पूरी तरह से सम्भावनाओं का शास्त्र बना छोडा है.

ज्योतिष विद्या की सत्यता इस बात से प्रमाणित हो जाती है कि मनुष्य की लाख इच्छा करने के बावजूद उसके जीवन में अप्रत्यासित रुप से अविश्वसनीय घटनाऎं घटित होती हैं. ज्योतिष का प्रचलनसदियों से सिर्फ भारत में नहीं बल्कि विश्व के हर छेत्र और हर समुदाय में किसी रूप में अभिन्न तौर पर है .आज आवश्यकता है की ज्योतिष का सही रूप समाज में लाया जाए . ज्योतिष और इससे संबधित व्यवसाय को नियंत्रित किया जा सके ताकि इसका दुरूपयोग न हो. समाज को शिक्षित करना है की ज्योतिष अन्धविश्वास नहीं फैलाता बल्कि जागरूकता लाता है .

ज्योतिष समय का विज्ञानं है . तिथि , वार, नक्षत्र , योग और कर्म इन पांच चीजों का अध्ययन कर भविष्य में होने वाली घटनायों का आकलन किया जाता है . संभावनायों और भविष्यवाणी के बजाय ज्योतिष शास्त्र का सही उपयोग परामर्श , मानव जीवन को अनुशासित और जिंदगी के हर पल का एक समुचित मार्गदर्शन के साधन के तौर पर समाज में प्रस्तुत करने की अंत्यत आवश्यकता है . केवल भविष्यवाणियों में सिमित न रह कर , ज्योतिष का आधार लेकर मनुष्य की जीवन की कई समस्यायों का हल निकाला जा सकता है. आज के इस युग में लोगों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन की जो जरूरत है उसे ज्योतिष बखूबी पूरा कर सकता है. ज्योतिष भविष्य को बदलता नहीं बल्कि मनुष्य को सही और उचित सलाह देता है . प्रथम तो हमें यह समझ लेना चाहिए की ज्योतिष है क्या ? ज्योतिष प्रकाश का नाम है | प्रकाश अँधेरे को दूर करता है अँधेरा लाता नहीं | ज्योतिष कर्म को निश्चित करता है कर्म से भटकाता नहीं | ज्योतिष व्यर्थ के प्रयासों से बचते हुए सफलता के लिए मदद करता है व्यर्थ के कार्य नहीं करवाता है | वस्तुतः ज्योतिष हमें हमारे अन्तर्निहित शक्ति का ज्ञान करवाते हुए सही दिशा प्रदान करता है |

ज्योतिष पर सतत शोध और विकास की आवश्यकता :

आज के बदलते परिवेश में ज्योतिष में सतत अनुसान्धित विकास और शोध की जरूरत है . प्राचीन समय से गुरु- शिष्य की परम्परा में विद्या और ज्ञान गुरु शिष्य को मौखिक तौर पर देते रहे और कई सदियों तक यह विधा सुरंक्षित रही. पर क्या अभी हमारे पास पूर्ण ज्ञान है और क्या यह शास्त्र संपूर्ण विकसित है. शायद इसका जवाब अभी सकारात्मक नहीं है .सामाजिक और सांसारिक परिवर्तन , विज्ञानं की नयी जानकारियों और नित नयी प्रौद्योगिकी और तकनिकी द्वारा समृद्ध होती विधाएं , ज्योतिष के लिए एक चुनौती के तौर पर भी देखा जा सकता है. इस प्राचीन धरोहर के सरंक्षण के लिए गहन अध्ययन करते हुए , इस विद्या में नए वातावरण के अनुसार संशोधन और आविष्कार का होते रहना बहुत जरूरी है . इसका यह अर्थ नहीं है की सिद्धांत अब पुराने पड़ने लगे हैं लेकिन यह भी सही है इस विधा में शोध की अनन्तु संभावनाएं मौजूद है . ज्योतिष विद्वानों का यह कर्तव्य हो जाता है की शोधों के आधार पर तात्काेलिक आवश्येकताओं के अनुरूप करते हुए इसे समाज के उपयुक्त बनाये . इसका यह अर्थ नहीं है की सिद्धांत अब पुराने पड़ने लगे हैं लेकिन यह भी सही है इस विधा में शोध की अनन्तक संभावनाएं मौजूद है . ज्योतिष विद्वानों का यह कर्तव्य हो जाता है की शोधों के आधार पर तात्काेलिक आवश्यैकताओं के अनुरूप करते हुए इसे समाज के उपयुक्त बनाये .

मानसिक विकारों , असंतोष और असुरक्षित जीवनयापन से गुजरता समाज धीरे धीरे धर्म , अध्यात्म और ज्योतिष की तरफ जिज्ञासा लिए बढ़ रहा है . विज्ञानं और प्रौद्योगिकी की निर्भरता और विकास के बावजूद वह शांति की खोज में प्राचीन परम्परायों की तरफ आकर्षित हो रहा है. शायद प्राचीन विधायों को तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा अन्धविश्वास और कल्पनायों का ज्ञान बता देने से , हमारे ही बीच ढोंगियों द्वारा इसका दुरूपयोग व्यावासिकरण तौर पर कर विश्वास हनन करने से सार्वजनिक तौर समाज दकियानूसी करार दिए जाने के डर से इसे अपनाने का साहस नहीं कर पा रहा है .

यह असीम अवसर प्रदान करता है की ज्योतिष को आज के वातावरण के अनुरूप बनाते हुए सतत शोध , अनुसन्धान और विकास करते हुए समाज को इसके उपयोगिता के बारे में जागरूक करें .

ज्योतिष औेर राष्ट्रीयता

ज्योतिष का अटूट संबध है धर्म ,योग , आयुर्वेद , अध्यात्म और भारतीय संस्कृति से. यह सभी राष्ट्रीय धरोहर है और हिंदुत्व की पहचान है ., राष्ट्रीय-गौरव, राष्ट्रीय-मर्यादा, राष्ट्रीय-आत्मीयता, राष्ट्रीय-समृद्धि आदि के लिए इन सबकी वृद्धि और उत्कर्ष की बात क्या की जाए-उसका कोई न्यूनतम स्वरूप भी निर्धारित न हो सकना चिंतनीय बात है। इन सभी विधायों की दुकान चलाने वालों और इनके बल पर समाज का प्रतिनिधित्व करने वालों के लिए इसे चैतन्य, जाग्रत, सतेज बनाये रखने के लिए विशेष प्रयास सत्य और प्रमाणिक ढंग से करते रहना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है

व्यक्तिगत स्वार्थों की अपेक्षा सामुहिक हित चिंतन को प्राथमिकता देनी है .अनिष्ट की आशंकायों से भ्रमित और तात्कालिक लाभ की मृग-मरीचिका में भटकते समाज को संभावनो , और भविष्य परोसने के बजाय ज्योतिष का उपयोग चिंतन-विश्लेषण द्वारा समाज का मार्गदर्शन , उचित सलाह और आदर्श जीवन-पद्धति निर्माण के लिए होना चाहिए . पुरुषार्थ और कर्म की प्राथमिकता को बनाये रखते हुए मनुष्य का जीवन मार्गदर्शन ही ज्योतिस का आधार होना चाहिए. उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए साधनों की शुद्धता औेर उत्तमता को ध्यान में रखना जरूरी है.

Thursday, July 19, 2012


Womaniya-वोमनिया -Kya yahi hai "" Womaniya 



वोमनिया ...हो  वोमनिया  ,..आ  हा  वोमनिया ..यह गीत तो सुनाने लगे ..
गुवाहटी से गुडगाँव ..अपराध और  बहस ..
आईये कुछ आंकड़ों पर नज़र डालें ...पता नहीं क्या यही है " वोमनिया " ???

Woman World Wide

Women and Poverty 
70% of the 1.2 billion people living in poverty are female
Women as Workers

Women do more than 
  • 67% of the hours of work done in the world
  • Earn only 10% of the world’s income
  • And own only 1% of the world’s property
  • The value of unremunerated work was estimated at about $16 billion, from which $11 billion represents theinvisible contribution of women
  • Women are paid 30-40% less than men for comparable work on an average
  • 60-80% of the food in most developing countries is produced by women
  • Women hold between 10-20% managerial and administrative jobs
  • Women make up less than 5% of the world’s heads of state
Women and Education
  • 60 % of the 130 million children in the age group of 6-11 years who do not go to school, are girls
  • Approximately 67% of the world’s 875 million illiterate adults are women3 out of 5 women in Southern Asia and
  • An estimated 50% of all women in Africa and in the Arab regionare still illiterate
Women and Health
  • Women account for 50% of all people living with HIV/AIDS globally
  • In the year 2000, there were
  • 80 million unwanted pregnancies
  • 20 million unsafe abortions
  •         5 lakhs maternal deaths
99% of these cases were reported in developing countries.

Woman in India
Child Sex Ratio (0_6 years)
The child sex ratio has dropped from
  • 945 females per 1000 males in 1991 to
  • 927 females per 1000 males in 2001
The United Nations Children’s Fund, estimated that upto 50 million girls and women are ‘missing’ from India’s populationbecause of termination of the female foetus or high mortality of the girl child due to lack of proper care

Women as Workers

Female share of non-agricultural wage employment is only 17%
Participation of women in the workforce is only
  • 13.9% in the urban sector
  • 29.9% in the rural sector
Women’s wage rates are, on an average
  • only 75 % of men’s wage rates and
  • constitute only 25% of the family income
In no Indian State do women and men earn equal wages in agriculture

Women and Education

Close to 245 million Indian women lack the basic capability to read and write.
Adult literacy rates for ages 15 and above for the year 2000 were
  • female 46.4%
  • male rate of 69%

Women and Health
  • The average nutritional intake of women is 1400 calories daily.The necessary requirement is approximately 2200 calories
  • 38% of all HIV positive people in India are women yet only 25% of beds in AIDS care centres in India are occupied by them
  • 92% of women in India suffer from gynaecological problems
  • 300 women die every day due to childbirth and pregnancy related causes
  • The maternal mortality ratio per 100,000 live births in the year 1995 was 440
Crime against Woman in India

Female Foeticide

Female foeticide in India increased by 49.2% between 1999-2000
Source:NCRB ‘Crime in India, 1999-2000’

According to NCRB ‘Crime in India, 2002’  the following crimes were committed against women in India.
Rape
  • 16,373 women were raped during the year
  • 45 women were raped every day
  • 1 woman was raped every 32 minutes
  • An increase of 6.7% in the incidents of rape was seen between 1997-2002
Incest 2.25% of the total rape cases, were cases of incest

Sexual Harassment
  • 44,098 incidents of sexual harassment were reported.
  • 121 women were sexually harassed every day
  • 1 woman was sexually harassed every 12 minutes
  • An increase of 20.6% was seen in incidents of sexual harassment between 1997-2002
Importation of girls/Trafficking
  • 11,332 women and girls were trafficked
  • 31 women and girls were trafficked every day
  • 1 woman or girl was trafficked every 46 minutes
Kidnapping and abduction
  • 14,630 women and minor girls were kidnapped or abducted
  • 40 women and minor girls were kidnapped every day
  • 1 woman or minor girl was abducted every 36 minutes
Dowry Related Murders
  • 7,895 women were murdered due to dowry
  • 21 women were murdered every day
  • 1 woman was  murdered due to dowry every 66 minutes
Domestic Violence
  • 49,237 women faced domestic violence in their marital homes.
  • 135 women were tortured by their husbands and in-laws  every day
  • 1 woman faced torture in her marital relationship every   11 minutes
  • Domestic violence constitutes 33.3% of the total crimes against women
  • A steep rise of 34.5% in domestic violence cases was witnessed between 1997-2002
Suicide
12,134 women were driven to commit suicide due to dowry1,10,424 housewives committed suicide between 1997-2001 and accounted for 52% of the total female suicide victims
Source: NCRB, ‘Accidental Deaths and Suicides in India’, between 1997-2001

Kya yahi hai "" Womaniya "" ?? Ho womaniya ,.Aa .ha Womaniya...Ho Womaniya ???

Poonam shukla