इस शहर की छतें कितनी अजीब है.....मेरे हिस्से की हवा , मेरे हिस्से का सूरज और मेरे हिस्से की चांदनी छीन लेते हैं...!
इस शहर की सड़कें भी कितनी बेईमान हैं ....लोग रात की दो रोटी के लिए ; दिन भर की जिंदगी दांव पर लगा लेते हैं....!!
क्या रहस्य है इन गलियों में ; पनघट की हंसी , सरपंच की चौपाल और डीव बाबा के ठौर गायब हो गए इसके आगोश में ....
वक़्त का शिकार है या हालात की मजबूरी , पड़ोस के घर का हुआ हादसा भी ,लोग चलते चलते अखबार में पढ़ लेते हैं ...!!!!
poonam shukla

इस शहर की सड़कें भी कितनी बेईमान हैं ....लोग रात की दो रोटी के लिए ; दिन भर की जिंदगी दांव पर लगा लेते हैं....!!
क्या रहस्य है इन गलियों में ; पनघट की हंसी , सरपंच की चौपाल और डीव बाबा के ठौर गायब हो गए इसके आगोश में ....
वक़्त का शिकार है या हालात की मजबूरी , पड़ोस के घर का हुआ हादसा भी ,लोग चलते चलते अखबार में पढ़ लेते हैं ...!!!!
poonam shukla

 
 
No comments:
Post a Comment
आपके कमेन्ट और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद