Sunday, January 30, 2011

ए मेरे देश -- क्रांति की एक पुकार

मुल्क के हर वाशिंदों में , हर दरजे में ,

हर आखों में निराशा देखा .

देश के सत्ताशिखर पर प्रजातंत्र के नाम पर ,

हो रहा तमाशा देखा .

लुप्त होती नैतिकता , खत्म हुई मानवता

हर किसी को धर्म और छेत्र के नाम पर

हर एक के लहू का प्यासा देखा




आज

मेरे देश के हर सवाल पर ,

यह रहबरे , मुल्क क्यों मौन सा है ?

अखबारों की काली सुर्ख़ियों में

सहमा सिमटा यह देश कौन सा है ?

यह में क्या देखता हूँ

भयभीत चेहरों के बंद होठों की जुबान

उजरीं हुई बस्तियां और जलते हुये मक्कन .

खरोंचों से भरी देह लिए बहना की दास्तान ,

क्या येही है मेरा वो प्यारा हिंदुस्तान .



केस की फाईलों से पटी अदालतें ,

न्याय क्यों इतना गूंगा बेहरा है ?

क्या मायने हैं आज़ादी के ,

क्या गुलामी का जख्म इतना गहरा है ?

राजनीति की देहलीज़ पर दम तोड़ता प्रशासन ,

हर विकास , हर योजना , हर दफ्तर पर ,

भ्रष्टाचार का पहरा है .



उन मासूम चेहरों को देखो जीनहोने मौत को देखा है ,

जा कर पूछ रोती बहना से ,

जिसने इंसानी वेश में हैवान देखा है .


क्या तेरी रगों में बहता नहीं , सुभास भगत राणा और शिवाजी का खून ,

या फिर तुने कौन सा और कैसा हिंदुस्तान देखा है ?




नहीं देखी गज़नी और चंगेज़ की लूट ,

तो अपने ही नेताओं द्वारा लूटता हिंदुस्तान देख .

न सूनी नादिर के हमले , तो दंगों और आतंक से तड़पता हिंदुस्तान देख .

याद नहीं विभाजन की काली रातें , वोह गुलामी के काले दिन ,

तो गरीबी , भूखमरी और बेकारी से कराहता हिंदुस्तान देख .




यदि चाहिए वह देश तो हर कतरे मैं खून का उबाल चाहिए ,

गंगा कावेरी के मौजों से उछलता चीखता इन्कलाब चाहिए ,

हिमालय को पिघलाता , हिंद्सागर से उफानता

हर गली -कुचे मैं क्रांति का एलान चाहिए



आज़ादी मिली तो भी क्या , आज़ादी की जंग अभी भी जारी है

बाहरी ताकतों से कहीं ज्यादा अन्दूरनी खतरा भारी है

मंजिल अभी दूर है , रास्ता बहुत ही मुस्किल ,

उठ , अर्जुन ! उठा गांडीव ..देर न कर ..

विश्राम की नहीं बारी है


बहुत हो गया ये तमाशा , अब मत फंसों

भ्रस्त और कुटील नेताओं के इन झूठे नारों में .

प्रगती के वादे थोथें हैं …

यह कुर्सियों की नौटंकी है ,

उठ ..आग लगा दो गन्दी राजनीती की इन दीवारों में


गीता के श्लोक तेरे गीत हों , कुरान तेरी जुबान हो ,

हर मुठ्ठियों में चेतना आये ,

उठे क्रांति हर बस्ती , हर गलियारों में .





Poonam Shukla

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