Sunday, January 30, 2011

घरेलु हिंसा और उपभोक्तावादी विवाह संस्कृति

घरेलु हिंसा या डोमेस्टिक वायेलेंस फिर चर्चा का विषय हो गया है. राहुल -डिम्पी की कहानी उनके बेडरूम से टीवी स्टूडियो जा पहुंची है और करोड़ों घरों के टीवी स्क्रीन पर इस रीलियाटी शो के रीलियाटी को टी आर पी के लालच मैं मीडिया पेश कर रही है . सवाल राहुल डिम्पी के घरेलु हिंसा का नहीं है . सेलेब्रिटी स्क्रीन पर छाये रहने के लिए प्रतिभाओं के बजे इस तरह के न्यूज़ कर कैमरा के सामने बना रहना चाहते हैं. चाहे वह घरेलु हिंसा जैसे विषय को हास्यापद तरीके से सीरियल के बतोर पेश करने के लिए क्या इसका प्रसारण कर रहे माध्यम जिम्मेदार है या वे जो इसे फैशन मानकर समाज में अपने आप को किसी तरह भी चाहते है किसी चटपटे न्यूज़ का हीरो बने देखना.

सवाल राहुल डिम्पी का नहीं है . हजारों महिलाएं गाँव कस्बों शहरों में घरेलु हिंसा का शिकार बने ही नियति का खेल मान कर चुपचाप सह रही हैं . पेचीदे कानून , सवेदान्हीन पुलिस व्यवस्था और पुरुष पर निर्भर रहने की मजबूरी उसे घरेलु हिंसा का सहज शिकार बना देती है. यह कितनी बड़ी विडम्बना है जहाँ उसे सबसे ज्यादा सुरक्षीत होना चाहिए वहीँ उसके इस विश्वास का गला घोंट दिया जाता है . भारतीय समाज जो शादी के बंधन को एक पवित्र अटूट बंधन मानता है , जहाँ कन्यादान सबसे बड़ा दान मन जाता है , जहाँ भाई की कलाई में राखी बांधकर बहन खुश होती है , सात फेरे लेकर अग्नि के समछ पत्नी की रक्षा की कसम खाई जाती है , शक्ति की पूजा के लिए मान के दरबार में करोदं अपना शीश झुकाते हैं , वही नारी आपने ही आँगन में घरेलू हिंसा को आपने नियत मानाने में विवश है.

घरेलु हिंसा सिर्फ पति पत्नी की बीच हुई मारपीट नहीं है. नारी को घरेलु हिंसा से गुजरान जन्म से पड़ता है. विश्व स्वास्थ्य संघठन के अनुसार लिंग निर्धारण कर गर्भपात कराना , बालविवाह , किसी भी तरह से योन शोषण , हर प्रकार की मानसिक और शाररिक प्रतानरा घरेलु हिंसा के दायरे में आती है. हारमोंस इंजेक्शन के बल पर जवान होती बच्चियां और पंचायतों के आदेश पर बलि की भेंट होती युवतियां भी घरेलु हिंसा के घिनोना रूप का शिकार हो रहीं हैं. मात्र कानून बना देने से सरकार की जिम्मेदारियां कम नहीं हो जाती है. राज्य सरकारों से अपेक्षा की गई है कि वे स्वतंत्र संरक्षण अधिकारी नियुक्त करें और अदालतें इन केसों का निपटारा तुरंत करें.

घरेलु हिंसा एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है. सिर्फ अविकसित समाज की नहीं बल्कि समृद्ध और प्रगति देशों में भी महिलाएं इसका शिकार हो रहीं हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए एक अध्ययन के अनुसार समाज में अपराधों के होने का एक बहुत बड़ा कारण है घरेलु हिंसा का होना. घरेलू हिंसा का शिकार बने परिवारों में बाले पड़े बच्चों में अपराधिक प्रवीरुति का पाया जाना आम बात है . इस लिए घरेलु हिंसा एक पारवीरीक समस्या ना होकर रास्त्र और अंतररास्ट्रीय समस्या मानी जाती है. इसके कई गंभीर दूस्प्रीनाम समाज को भोगने पड़ते हैं जो सिर्फ घरेलु हिंसा सहती महालियों तक ही सीमित नहीं रह जाती.

!! यत्र नारी पूज्यते रमन्ते तत्र देवता !! शास्त्रों में कहे जाने वाले इस देश में आज भी .अबला नारी तेरी यही कहानी . आंचल में दूध और आँखों में पानी ! 

No comments:

Post a Comment

आपके कमेन्ट और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद