Sunday, January 30, 2011

मानवाधिकार बुद्धिजीवियों - सवाल है .-- मानव कौन और अधिकार किसका ? नक्सल या सुरक्षा जवान ???


रायपुर में अदालते के फैसले में मानवधिकार कार्यकर्ता को नक्सल की मदद के आरोप में सजा दिए जाने पर देश भर के गलियों में छिपे तथाकथित मानवाधिकार के ठेकेदार और काफीटेबल और रेस्तरां में देश की हर  समस्या का हल खोजनेवाले बुद्धिजीवी TV चैनलों और अख़बारों में मानवाधिकार हनन की चिल्लोपों कर रह हैं. मुझे यह बहस नहीं करनी है की वे सही हैं या गलत !  न ही बहस करनी  है नक्सल और सरकार पर !

कमरों में बैठकर नीति बनाने और बहस करने से बहुत अलग स्थिति गोलियों का सामना करनेवाले सुरक्षाबलों को झेलनी पड़ती है. गृहमंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार 10000+ लोग नक्सल शिकार हुए है विगत 5 सालों में.  सिर्फ 2010 को देखें तो 615 नागरिक और 267  सुरक्षा जवान मारे गए .जिसमे 152 सुरक्षा जवान सिर्फ छत्तीसगढ़ राज्य में शहीद हुए. साउथ एशिया terrorism पोर्टल के अनुसार last 5 सालों में 1123 सुरक्षा जवान नक्सलवाद के शिकार हुए है. 

मानवाधिकार के बुद्धिजीवी क्या यह जानते है वर्षों से CRPF  टुकड़ियाँ और पुलिस  के जवान  दंतेवाडा के बीहड़ जंगलों में बुनियादी नागरिक सुविधायों से दूर लगे हुए हैं और इस डर से की कब उनकी गाडी किस बारूदी सुरंग का शिकार हो जाए ? सरकार  और नक्सल  दोनों के बीच फंसे यह जवान बहनों की शादी , बुडी अम्मा की खांसी और अपने बड़ते बच्चों की मुस्कराहट के लिए तरसते हुए  , अखबारों में नेताओं के भ्रष्ट काले कारनामें और बुद्धिजीवों की अनर्गल प्रलाप को भी जानते हुए  इस लिए शहीद होने को तैयार हैं ताकि हम और आप काफी की चुस्कियां लेकर बहस कर सके. 

पश्चिम देशों से पुरस्कार की अभिलाषा पाने  के  लिए जरूरी तो नहीं की आप पुरे देश को दोष देते रहें और स्कूल , हॉस्पिटल और  निर्दोष नागरिकों की बसों को उड़ाने वालों के घिनोने कारनामे अनदेखा कर एक जवान की गोली से कौन मारा गया..उसके बहस को लेकर रात दिन एक करें. 

या फिर आप भी हात बटाएं , नक्सल से प्रभावित इलाकों में विकास के कार्यों को बढाने में , वहां की जनता को शिक्षित करने में , या सरकार को सही और प्रभावशाली प्रशासन बनाने में सहयोग दें.  

शायद एक जवान की मौत पर बहस करने  से आप मीडिया के सुर्ख़ियों में नहीं आते या  विकास कार्यों को सही ढंग से ला कर नक्सली प्रभाव से जनता  को मुक्त करने  के कार्यों के  लिए कोई विदेशी पहचान नहीं मिलती

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